ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''मर्द के लिए सबसे ज़्यादा दिलचस्प इश्क का अफ़साना होता है...बताइए न, क्या कहा उसने?''
''पूनम से अपनी पहली मुलाकात का जिक्र कर रहा था।''
''कैसे हई थी उनकी पहली मुलाकात?'' सलमा की रुचि और भी बढ़ गई थी।
रशीद पत्नी की ओर देखकर मुस्कराने लगा।
''बताइए न...'' उसे चुप देखकर सलमा ने आग्रह किया।
रशीद तो पहले ही रणजीत के जीवन को मस्तिष्क में बैठाने का प्रयास कर रहा था। सलमा के अनुरोध पर वह उसे रणजीत की प्रेम-कहानी सुनाने लगा।
बरसात की एक तूफ़ानी रात थी...रणजीत का यूनिट उन दिनों दिल्ली छावनी में था। वह दोपहर को कुछ दोस्तों के साथ। यूनिफ़ार्म में शहर चला गया था। उसने वहीं होटल मे खाना खाया और रात को फ़िल्मी-शो देखकर लौट रहा था कि अचानक हवाओं की गति तीव्र और भयानक हो गई। क्षण-भर बाद ही बादलों की गरज के साथ, मोटी-मोटी बूंदें पड़ने लगीं...। अचानक लाइट फेल हो जाने से सड़क की बत्तियां भी बुझ गई थीं। अंधेरा ऐसा छा गया। कि अपना हाथ भी सुझाई नहीं दे रहा था। रणजीत ने मोटर साइकिल रोक दी और किसी आश्रय की तलाश करने लगा। समीप में ही एक बिल्डिंग के टैरेस के नीचे वह खड़ा हो गया और घनघोर बारिश को देखने लगा। धीरे-धीरे उसकी आंखें अंधेरे में देखने के काबिल हो गईं।
उसी टैरेस के नीचे दूसरे सिरे पर एक नौजवान लड़की भी बारिश से बचने के लिए खड़ी थी। वह कुछ डरी-डरी-सी रणजीत की ओर देख रही थी। रणजीत ने उसे सिर से पैर तक निहारा तो वह कंपकंपाकर और भी दीवार से लगकर सिमट गई।
रणजीत जल्दी से बोल उठा-''क्षमा कीजिए, मुझे मालूम नहीं था कि आप यहां खड़ी हैं, वर्ना...'' कहते-कहते उसकी दृष्टि लड़की के विकसित वक्ष पर ठहर गई और वह जैसे वाक्य पूरा करना ही भूल गया हो।
लड़की ने अपने सीने पर भीगी साड़ी का आंचल फैलाकर, उसे छिपाने का व्यर्थ प्रयत्न किया तो रणजीत ने उसकी घबराहट देखकर जल्दी से अपनी दृष्टि हटा ली और उसकी मनोदशा का अनुमान लगाते हुए दूसरी ओर मुंह करके खड़ा हो गया।
उसकी इस शिष्टता पर लड़की के होंठों पर अचानक मुस्कराहट फैल गई और उसने मन-ही-मन उसकी शराफ़त को सराहते हुए कहा-''अच्छा हुआ आप आ गए।''
''क्यों?' रणजीत ने उसकी ओर पलटकर पूछा।
'''अकेले में मुझे डर लग रहा था।''
''लेकिन आप इतनी रात गए...?''
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