ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
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विधान अनुसार देश से द्रोह महाअपराध था जिसकी सज़ा थी मौत। गिरफ़्तार हो जाने के बाद रशीद ने बिना संकोच के अपना अपराध स्वीकार कर लिया। वह एक साहसी और कर्त्तव्य-परायण अफ़सर था जिसे अपने सीनियर अफ़सरों का पूरा विश्वास प्राप्त था... फिर जिस दुखदाई घटना से वह दो-चार हुआ था और विधि के गुप्त हाथों ने जिस प्रकार भावुकता से उसे देश द्रोह पर विवश कर दिया था इसके लिए कई अफ़सरों के दिल में उसके प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी... कौन बेटा अपनी मां की कोख उजाड़ सकता है; कौन भाई अपने सगे भाई का खून बहा सकता है...? विधाता के रचाए हुए इस घटनापूर्ण खेल में वह एक पात्र बन गया था...लेकिन कुछ भी हो देश से द्रोह तो यह था ही और इसके लिए उसके दोस्त उसकी कोई सहायता न कर सके।
उसका Summary of evidence हुआ। ब्रिगेडियर उस्मान कर्नल रज़ाअली और कैम्प के दूसरे अफ़सरों ने उसके विरुद्ध शहादतें दीं। चंद ही दिनों में उसकी 'चार्ज शीट' तैयार करके उसे जनरल कोर्टमार्शल का हुक्म सुना दिया गया। उसे लाहौर के किले में कड़ी फ़ौजी हिरासत में रखा गया। कुछ शुभचिन्तकों ने उसे किसी बड़े वकील की कानूनी सहायता लेने का परामर्श दिया लेकिन रशीद ने अपने मुकदमे की स्वयं ही पैरवी करने का निश्चय कर लिया।
फ़ौजी अदालत में उसने दिल हिला देने वाला भावुकता पूर्ण ब्यान दिया लेकिन न्याय के सामने भावना की एक न चली। उसका सबसे बड़ा अपराध यह सिद्ध हुआ कि उसने भारत में रहकर जो सैनिक गुप्त सूचनाएं रिकार्ड और नक्शे प्राप्त किए थे उन सबको उसने नष्ट कर दिया था... यहीं नहीं बल्कि दुश्मन के एक क़ैदी को स्वयं जेल से निकाल कर सीमा पार पहुंचा दिया था। वतन से गद्दारी के अपराध में फ़ौजी अदालत ने उसे मौत की सज़ा का हुक्म दिया।
मेजर को यूनीफ़ार्म में संगीनें ताने सिपाहियों के साथ मार्च करा के उसे सबके सामने लाया गया... पहले उससे टोपी और बेल्ट ली गई फिर यूनिट का नाम और फिर रेंक चिन्ह के बैज उसके कंधे से नोंच लिए गए... फिर उसके हाथों में हथकड़ियां डालकर उसे ग्राऊंड से शैल की ओर ले जाया गया। इस गम्भीर कार्यवाही में वहां उपस्थित अफ़सरों और जवानों की शायद धड़कनें तक बंद हो गई थीं क्योंकि वहां इतनी गहरी निस्तब्धता छाई थी कि सांस लेने की आवाज़ तक सुनाई दे रही थी... वातावरण उदास और बोझिल था।
जब रशीद को शैल की ओर ले जाया जा रहा था तो सामने एक कोने में सलमा सफ़ेद वस्त्रों में एक संगमरमर की मूर्ति के समान मौन खड़ी हुई थी। उसकी पलकें भीगी हुई थीं और वह पथराई हुई दृष्टि से अपने पति को देखे जा रही थी।
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