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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

चलते-चलते रशीद पत्नी के पास रुका लेकिन सलमा टस-से-मस न हुई जैसे अदालत के फैसले ने उसके शरीर से आत्मा खींच ली हो और वह केवल एक निष्प्राण मिट्टी का पुतला मात्र रह गई हो... या फिर वह पति के आदेश अनुसार एक फ़ौजी अफसर की साहसी और आदर्श पत्नी बनने का प्रयत्न कर रही थी।

''सलमा...।'' रशीद ने धीमी और बोझिल आवाज़ में उसे पुकारा।

सलमा के स्थिर शरीर में एक कम्पन्न सी उत्पन्न हुई...लेकिन होंठ फिर भी नहीं खुले और वह उसी प्रकार पथराई हुई नज़रों से उसे देखती रही। रशीद भर्राई हुई आवाज़ में बोला-

''अपनी पलकों से आंसू पोंछ डालो सलमा... और एक वादा करो मुझसे-कि जब हिंदोस्तान और पाकिस्तान के हालात अच्छे हो जाएगे... इन दोनों मुल्कों के दरमियान उठी नफ़रत की दीवारें ढह जाएंगी तो तुम वहां जाओगी... मेरी मां से मिलने... देखो कुल्लू की वादी में एक छोटा सा गांव है मनाली... वहीं तुम्हारी सास, देवर और देवरानी रहते हैं... वह सब तुमसे बहुत प्यार करते हैं... और मेरी मां तो तुम्हें सीने से लगाने के लिए तड़प रही है... वह अपनी नई बहू को उन्हीं कपड़ों और ज़ेवरों से सजाना चाहती है जो शादी के दिन तुमने पहने थे... जब उसे मालूम होगा कि तुम्हारा सुहाग उजड़ गया है... उसका बेटा इस दुनियां में नहीं रहा तो उस पर ग़म का पहाड़ टूट पड़ेगा... शायद तुम्हें पाकर उसका ग़म कुछ हल्का हो जाए... इसलिए वादा करो कि उसके ज़ख्मों पर मरहम रखने के लिए तुम ज़रूर जाओगी...।''

पलकों में छुपा आंसुओं का निर्झर गालों पर उतर आया और सलमा ने हां में गर्दन हिला दी... लेकिन इसके साथ ही उसके पैर लड़खड़ा गए... रशीद ने हथकड़ी पड़े हाथों से ही झट बढ़कर उसे थाम लिया और फिर बड़ी निराशा से उसके चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोला- ''आज भी मुझे 'अलविदा' न कहोगी...आज तो मैं आखिरी सफ़र पर जा रहा हूं।''

''अ-ल-वि-दा...'' सलमा के थरथराते होंठों से बड़ी मुश्किल से निकला-और फिर अचानक वह उसके हाथों में पड़ी लोहे की हथकड़ियों से टकरा-टकराकर पागलों की तरह अपना सिर फोड़ने लगी।

सलमा के कुछ रिश्तेदारों ने जो वहां उपस्थित थे बढ़कर उसे थाम लिया... और सिपाही उसके रशीद को हमेशा के लिए उससे अलग करके अपने साथ ले गए। जहां तक रशीद उसे नज़र आता रहा वह निराश, दुख भरी नज़रों से उसे देखती रही और उसके दिल की गहराइयों से दर्द में डूबी हल्की-हल्की आवाज़ उभरती रही- ''अलविदा... अलविदा... अलविदा...।''

।। समाप्त ।।

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