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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रणजीत के सीने से लगी, पूनम की दृष्टि अचानक उसके गले में लटके 'ओम्' के लाकिट पर पड़ी तो आंसू पोंछते हुए वह कह उठी- ''तो उस दुश्मन ने अपना वचन निभा ही दिया।''

''उसे दुश्मन न कहो पूनम...वह तुम्हारा देवर है...मेरा हमशकल जुड़वां भाई...'' रणजीत ने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा।

''क्या...?'' असीम आश्चर्य से वह उछल पड़ी।

रणजीत उसे पूरी बात बताना ही चाहता था कि उसी समय गौरी के साथ मां अंदर आई और बेटे की उजड़ी हुई सी दशा को देखती हुई पास आकर कांपती आवाज़ में बोली-''यह क्या हालत बना रखी है तूने...मेरे लाल...यह मैले कपड़े-बढ़ी हुई दाढ़ी-बीमार सूरत-तेरी तबीयत तो ठीक है ना?''

''हां मां...''

''फिर यह हुलिया क्या बना रखा है तूने-चार छ: दिन में ही इतना बदल गया है?''

''चार छ: दिन में नहीं मां...चार छ: महीनों में कहो-मैं तो आज ही पाकिस्तान से लौटा हूं।''

''क्या कह रहा है रे-इतने दिन मेरे पास रहकर तो तू गया था दिल्ली-व्यापारियों से रुपया वसूल करने और अपनी छुट्टी बढ़वाने-''वह मैं नहीं था मां...।''

''फिर कौन था वह? क्या पागल समझता है मुझे?''

''नहीं मां...वह जो इतने दिन तुम्हारे साथ रहा तुम्हारा बेटा रशीद था।''

मां ने अविश्वास की नज़रों से उसे देखा तो रणजीत ने भर्राई हुई आवाज़ से संक्षेप में उसे बता दिया कि किस प्रकार रणजीत बन कर रशीद हिन्दोस्तान में आया और फिर अपने जीवन का भेद जानने के बाद किस प्रकार उसने पाकिस्तान पहुंचकर अपने प्राणों पर खेलकर भाई को क़ैद से रिहाई दिलाकर भेजा है।

मां आश्चर्य से मुंह खोले उसकी बातें सुन रही थी और फिर जैसे ही वह चुप हुआ वह एकाएक किसी कटे हुए पेड़ के समान लहराई और गिरने ही वाली थीं कि रणजीत ने बढ़कर उन्हें थाम लिया। बेटे की बांहों में पागलों के समान वह बड़बड़ाने लगीं- ''ऐ भगवान्! यह कैसा न्याय है तेरा...मेरा बेटा बरसों के बाद मुझे मिला भी तो मैं उसे जी-भर के सीने से न लगा सकी-जी-भर के उससे बातें न कर सकी...भाग्य की यह कैसी दीवार है जिसे मेरी ममता भी न ढा सकी...मुझे अपने बेटे के पास ले चलो...अभी ले चलो अपने रशीद के पास मुझे नहीं तो मेरा दम घुट जाएगा।

मां रणजीत के हाथों से फिसल कर बाहर जाने के लिए मचलने लगी। रणजीत और पूनम उसे संभालने का प्रयत्न करने लगे। इसी दीवानगी की हालत में वह चकराकर बेटे की बांहों में बेहोश हो गई।

गौरी जल्दी से पानी लाने के लिए भागी...रणजीत ने झट मां को गोद में उठाकर पलंग पर लिटा दिया और उसी के दोपट्टे से उसके चेहरे का पसीना पोंछने लगा।

पूनम पास ही खड़ी-किसी गहरी सोच में डूबी थी-शायद वह ज़िन्दगी के इस विचित्र नाटक के बारे में सोच रही थी।

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