ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
|
5 पाठकों को प्रिय 363 पाठक हैं |
सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''तुम जानते हो गद्दारी की सज़ा क्या होती है?''
''जानता हूं...।''
''इसके बावजूद भी...।''
''जी हां, इसके बावजूद भी मैंने यह गद्दारी की है।''
कर्नल रज़ाअली रशीद के यह बेझिझक और चटक उत्तर सुनकर गुस्से से आपे से बाहर हो गया और सिपाहियों की ओर मुड़कर बोला-''गिरफ्तार कर लो इसे...''
सलमा जो अब तक चुपचाप डर से सहमी हुई खड़ी थी कर्नल रज़ा का हुक्म सुनकर दौड़कर उन सबके सामने ही पति से लिपट गई और चिल्लाई-''नहीं-नहीं...इन्हें कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता...इन्होंने मुल्क से कोई गद्दारी नहीं की...कौम को कोई धोखा नहीं दिया...इन्होंने तो अपने खून की मदद की है-अपने भाई को बचाया है-अपनी मां के सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश की है।''
सलमा की बात किसी की समझ में नहीं आई...उसकी पीड़ा का किसी ने अनुमान नहीं लगाया और उसकी आंखों के सामने उसके पति को मिलिट्री पुलिस के सिपाहियों ने पकड़ लिया...सलमा रशीद के पांव में गिरकर फूट-फूटकर रोने लगी और फिर वहीं बेहोश हो गई।...फिर जब उसे होश आया तो उसका सरताज, उसका प्रीतम उसके पास नहीं था केवल उसके अन्तिम-शब्द सलमा के कानों में गूंज रहे थे-''मेरे पास वक़्त कम है सलमा...वादा करो कि यह सबकुछ तुम एक फ़ौजी अफ़सर की बहादुर बीवी की तरह बर्दाश्त कर लोगी।''
मनाली की हरी-भरी सुन्दर वादी को सूरज की सुनहरी किरणों ने नहलाना आरंभ ही किया था कि रणजीत थके कदमों से अपने घर के आंगन में दाखिल हुआ-वह डरते-डरते कदम बढ़ाता हुआ इधर-उधर झांक रहा था-इस समय घर में कोई नहीं था केवल मां अपने कमरे में बने छोटे से मंदिर में बाल गोपाल की पूजा में लीन थी। रणजीत के दिल में अचानक मां का सामना करने का साहस न हो रहा था।
तभी पूनम गौरी के साथ बाहर से आई-आहट पाकर आंगन में खड़े रणजीत ने सहसा पलटकर देखा और पूनम के दिल को एक तीव्र झटका लगा...यह तो उसका रणजीत था-हां रणजीत ही था...लेकिन कितना बदला हुआ मैले-कुचैले कपड़े...बढ़ी हुई दाढ़ी-कमज़ोर बदन-सुते हुए चेहरे पर अंदर को धंसी हुई आंखें जैसे वह महीनों का बीमार हो। पूनम के मुंह से अनायास एक दर्द भरी चीख़ निकल गई। रणजीत धीरे-धीरे पांव बढ़ाता उसकी ओर बढ़ा -दोनों थोड़े अंतर पर खड़े स्थिर मूर्तिमान एक-दूसरे को एकटक देखते रहे और फिर अचानक पूनम झपट कर उसके सीने से जा लगी और फूट-फूटकर रोने लगी।
गौरी जो अभी तक खड़ी, सन्देह से रणजीत को देखे जा रही थी 'मांजी' 'मांजी' चिल्लाती हुई अंदर की ओर भाग गई।
|