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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

थोड़ी देर बाद जीप गाड़ी सीमा के पास एक नहर के सुनसान किनारे पर पहुंचकर रुक गई। शायद यही रशीद की मंजिल थी। गाड़ी में बैठ-बैठे रशीद ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई... सर्वत्र सन्नाटा छाया हुआ था। हवा से पास के खेतों में अधपकी फ़सल जब लहराती तो एक हलकी-सी सनसनाहट उस सन्नाटे को तोड़ देती। वातावरण का भली-भांति निरीक्षण करके रशीद ने धीरे से कहा-''बाहर आ जाओ...कैप्टन।''

रणजीत ने ओवरकोट हटाया और कूदकर जीप गाड़ी की फ्रंट सीट पर आ बैठा। रशीद ने झट अपने कोट की जेब से कैप्टन रणजीत के क़ाग़जात और आईडेंटिटी कार्ड उसे देते हुए कहा- ''अच्छा...खुदा हाफ़िज़।''

रणजीत ने आश्चर्य से अपने इस हमशकल को देखा जिसकी आंखों में आज कुछ अनोखी-सी चमक थी। वह टकटकी बांधे उसे देखे जा रहा था...कुछ देर बाद रशीद ने उसका कंधा थपथपाते हुए कहा जाओ दोस्त यह नहर हिन्दोस्तान और पाकिस्तान की सरहद है-इसका एक किनारा हमारा है और दूसरा तुम्हारा-तुम एक अच्छे तैराक हो-एक छलांग लगाओ और तैरते हुए अपने किनारे तक पहुंच जाओ।''

''लेकिन क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुमने मेरे लिए इतना बड़ा ख़तरा क्यों मोल लिया।

''हमारी सूरतें जो आपस में मिलती हैं।''

''वह तो तब भी मिलती थीं जब तुम मुझे क़ैदखाने की काल-कोठरी में डालकर मेरे देश में जासूसी करने चले गए थे।''

''वह मेरा फ़र्ज था और यह है उसकी तलाफी-मेरा प्रायश्चित।''

''प्रायश्चित?'' रणजीत बड़बड़ाया।

''हां-तुम अभी नहीं समझोगे-जाओ देर न करो...किसी को ख़बर हो गई तो मेरे साथ तुम भी कहीं के न रहोगे...अब तक शायद अफ़सर हरकत में आ चुके होगे।''

''फ़ौजी कानून मैं अच्छी तरह समझता हूं...मैं जानता हूं मेरे यूं जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा...लेकिन मैं यह जाने बिना नहीं जाऊंगा कि तुम मेरे लिए अपनी ज़िन्दगी को दांव पर क्यों लगा रहे हो?''

''देखो रणजीत-इस वक्त ज़िद करके मेरी तमाम कोशिशों पर पानी मत फेरो...खुदा के लिए जाओ रणजीत देर न करो-वहां पूनम तुम्हारा इन्तजार कर रही है। मां ने अगले महीने की अठारह तारीख को तुम्हारी शादी तै कर रखी है।'' रशीद ने जल्दी-जल्दी कुछ भावुक स्वर में कहा।

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