ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''लेकिन यह अचानक मेरी प्रेमिका से, मेरी मां से और मुझसे तुम्हें इतनी दिलचस्पी क्यों पैदा हो गई? कल तक तो तुम मेरे देश के दुश्मन थे-आज दोस्त कैसे बन गए? अब तो यह सब जाने बिना मेरे लिए जाना नामुमकिन हो गया है।'' रणजीत ने हठ करते हुए कहा।
''अच्छा...तुम जानना ही चाहते हो तो सुनो...हम दोनों का हमशकल होना इत्तिफ़ाकिया नहीं है रणजीत... हम दोनों जुड़वां भाई हैं...।''
''क्या?'' रणजीत को एक तीव्र झटका लगा।
''हां रणजीत...हम दोनों सगे भाई हैं।''
''नहीं-यह कैसे हो सकता है?'' रणजीत चीख़ पड़ा और फटी-फटी आंखों से रशीद को घूरने लगा। यह रहस्य जानकर उसके पूरे शरीर में एक कंपकंपी-सी दौड़ गई। एक भूचाल-सा आया जिसने उसे झंझोड़ कर रख दिया। अभी वह सकते में ही खड़ा था कि रशीद फिर बोला-''यह हक़ीकत है रणजीत...हम दोनों एक ही मां के बेटे हैं जो हिंदोस्तान के बंटवारे के वक़्त एक दूसरे से बिछुड़ गए थे तुम मां के साथ हिंदोस्तान चले गए और मुझे मुसलमान बनकर पाकिस्तान में रहना पड़ा...ज़िंदगी का यह राज मैं तब ही जान सका जब अपनी मां से मिला।''
''तो क्या मां तुम्हें पहचान गई?'' रणजीत ने उसके चुप होते ही पूछा।
''नहीं-बल्कि मुझे रणजीत ही समझकर उसने यह राज उगल दिया-जानते हो मां ने मेरे बचपन से लेकर शादी तक की तस्वीरों को सीने से लगाकर रखा हुआ है। मां जोकि इन्हीं यादों और मुस्तकबिल के सुनहरे सपनों के सहारे ही वह जी रही है...वह सपने जो शायद कभी पूरे न होंगे।''
''तो तुम मेरे भाई हो रशीद।''
''हां रणजीत...मेरे भाई...लेकिन अब तुम देर मत करो...जाओ...लेकिन जाने से पहले पहली और आखिरी बार मेरे सीने से लग जाओ...क्योंकि मैं जानता हूं यह हमारी आखिरी मुलाकात है।'' यह कहते हुए रशीद ने बड़ी भावुकता से रणजीत को गले से लगा लिया।
तभी दूर से कई जीप गाड़ियों की रौशनियां चमकती दिखाई दीं। गाड़ियां अभी दूर थीं किंतु वह नहर वाली सड़क पर ही बढ़ी जा रही थीं। रशीद कांप उठा और झटके से रणजीत को अपने-आप से अलग करते हुए बोला-''जल्दी से कूद जाओ इस नहर में...जाओ...जल्दी...''
''लेकिन भैया तुम्हारा क्या होगा?'' रणजीत उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला-''मेरा खुदा हाफ़िज़ है-मां और पूनम भाभी से कह देना मुझे मुआफ़ कर दें।''
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