ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
18
आधी रात का समय होगा जब ब्रिगेडियर उस्मान के टेलीफ़ोन की घंटी एकाएक बज उठी। दिन भर के काम से थककर वह गहरी नींद सो रहे थे...निरन्तर ट्न-ट्न की आवाज़ से झुंझला कर उन्होंने रिसीवर उठाया और कुछ झल्लाकर बोले-''हैलो...। कौन...? ओह कर्नल...क्या बात है?''
''मुआफ़ कीजिए सर...इतनी रात गए आपको जगाना पड़ा।'' कर्नल रज़ाअली ने उधर से क्षमा याचना करते हुए कहा।
''कोई खास बात?''
''जी हां-अभी-अभी इतला मिली है कि मेजर रशीद खुफिया क़ैदखाने से हिन्दोस्तानी क़ैदी कैप्टन रणजीत को निकाल ले गया है।''
''क्या...? मेजर रशीद...। लेकिन वह हिन्दोस्तान से कब लौटा?'' उस्मान ने आश्चर्य से पूछा।
''यही जानने के लिए तो मैंने आपको फ़ोन किया है कि वह कब आया है और किसकी इजाज़त से इस क़ैदी को बाहर ले गया है।''
''मुआमला तशवीशनाक मालूम होता है कर्नल...शायद उसने मेरी दी हुई रियायतों का ग़लत इस्तेमाल करने की कोशिश की है...कहीं वह दुश्मनों से मिलकर वतन के साथ कोई गद्दारी तो नहीं कर रहा?''
''अगर आप का हुक्म हो तो वायरलैस पर...।''
''अभी नहीं...पहले हमें उसका मकसद मालूम करना होगा और तब तक हर कदम निहायत होशियारी से उठाना होगा-अगर बात बाहर निकल गई तो हो सकता है यू०एन०ओ० के सामने हमारी पोजीशन गिर जाए।''
''तो क्या किया जाए सर?''
''तुम फ़ौरन यहां चले आओ।''
कर्नल रज़ाअली को अपने घर आने का आदेश देकर ब्रिगेडियर उस्मान ने रिसीवर नीचे रखा और फिर उठाकर रशीद के घर का नम्बर मिलाना चाहा लेकिन झट कुछ सोचकर विचार बदल दिया। रिसीवर को क्रैडल पर रखकर मानसिक उलझन दूर करने के लिए वह अपने हाथों की उंगलियां मरोड़ने लगे। उन्हें अभी तक इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि रशीद हिन्दोस्तान से लौट आया है और ऐसा दायित्वहीन काम भी कर सकता है।
दूसरी ओर रशीद के दिल में जो तूफ़ान मचा था उसका अनुमान किसी को न था यहां तक कि स्वयं रणजीत जिसे वह क़ैदखाने की कोठरी से निकालकर लिए जा रहा था, उसके इरादों के बारे कुछ नहीं जानता था। रणजीत को उसने जीप में लिटाकर अपने ओवर कोट से ढांप रखा था और जीप बार्डर की ओर उड़ी जा रही थी चैक पोस्ट पर थोड़ी देर के लिए उसकी गाड़ी रुकी लेकिन फिर आगे बढ़ गई। मेजर रशीद पर किसी को किसी प्रकार का सन्देह नहीं हुआ।
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