ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
दूसरे दिन दोपहर को ट्रक पर माल लदवाकर जब रशीद जाने लगा तो मां, पूनम और गौरी सड़क तक उसे छोड़ने आईं। रशीद ने मां के चरण छू कर असास ली, भगवान का प्रसाद चखा और पूनम को अपने लौटने तक वहीं रुकने का निर्देश देकर गौरी की ओर बढ़ा। उसने गौरी के सिर पर हाथ फेरा तो वह कह उठी- ''भैया। दिल्ली से मेरे लिए रंगीन चूड़ियां लेते आना।''
''अरी-कांच के टुकड़े क्या करेगी-अब तो सोने की चूड़ियां लेना इससे-ब्याह पर।'' मां ने मुस्कराते हुए कहा।
माल से लदा हुआ ट्रक पुलिया के पास खड़ा हुआ रशीद की प्रतीक्षा कर रहा था। मां और गौरी पुलिया पर बैठ गई लेकिन पूनम रशीद के साथ ट्रक तक चली आई। ट्रक में बैठने से पहले पूनम ने चुपके से 'अल्लाह' खुदा हुआ उसका लाकिट उसके हाथ में दे दिया।
''यह क्या?'' रशीद ने आश्चर्य से पूछा।
''तुम्हारे दोस्त की निशानी।''
''लेकिन तुम्हरे 'ओम्' का क्या होगा?''
''वह मेरी ओर से रणजीत को दे देना 'वापसी' में उनकी रक्षा करेगा।'' कहते-कहते पूनम की आवाज़ भर्रा गई और उसकी पलकों पर आंसू झिलमिलाने लगे।
रशीद उचक कर ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठ गया और ट्रक मनाली गांव से रवाना हो गया। मां से बिदा होते हुए रशीद का दिल बोझिल था। वह सोच रहा था मां का यह प्यार जो जीवन में पहली बार उसे मिला है इतना संक्षिप्त होने पर भी कितना भरपूर था...अब यह प्यार उसे कभी नहीं मिल सकेगा... भाग्य सचमुच बड़ा बलवान है। खिड़की से गर्दन निकाले हर मोड़ पर वह मां को देखता रहा। उसका जी चाह रहा था कि यह क्षण स्थिर हो जाएं सार्वकालिक हो जाएं और वह मां को इसी प्रकार देखता रहे-लेकिन ऐसा न हुआ...जैसे ही ट्रक ढलान में उतरा मां उसकी आंखों से ओझल हो गई। उसके मस्तिष्क में बस एक अमिट छाप रह गई...ममता भरे मां के चेहरे की, एक छवि रह गई उसके कल्पना पट पर...दिल पर बहुत पत्थर रखने पर भी उसकी आंखों में आंसू छलक आए और वह उन बर्फ़ीली घाटियों को देखता हुए ठंडी आहें भरने लगा।
सडक के साथ-साथ तेज़ पानी की नदी बह रही थी...रशीद सोचने लगा वह भी इस नदी के जल के समान ही है जो इन घाटियों से एक बार गुज़र कर फिर वापस नहीं आता।
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