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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

बाडर आते ही उसे एक झटका सा लगा...उसने देखा अंधेरे में बरामदे के दूसरे सिरे पर रशीद खड़ा सिगरेट फूंक रहा था। पूनम को देखकर उसने सिगरेट फ़र्श पर फेंक कर पैर से मसल दिया और उसकी ओर बढ़ते हुए बोला-''क्यों? नींद नहीं आ रही क्या?''

''जो चिंगारियां तुमने मेरे मस्तिष्क में भर दी हैं उनकी तपन से भला नींद कैसे आ सकती है मुझे...लेकिन तुम...?''

''मुझे भी नींद नहीं आ रही...सोचता हूं कल चला जाऊंगा तो मां क्या सोचेंगी।''

''यही कि उनका बेटा व्यापारियों से पैसा वसूल करने और छुट्टी बढ़वाने गया है।''

''वह तो जाने का एक बहाना है-रणजीत के आने में दो-चार दिन अधिक भी लग सकते हैं।''

''तो क्या है-तब तक मैं मां की सेवा करुंगी।'' पूनम ने कहा और फिर शंका भरी दृष्टि से उसे देखती हुई बोली, ''तुम्हें विश्वास है रणजीत सकुशल लौट सकेंगे?''

''सैण्ट परसैण्ट विश्वास है...क्योंकि वह न आया तो मां के, सारे सपने टूटकर बिखर जाएंगे।''

''लेकिन तुम्हें यह अचानक उनसे हमदर्दी क्यों हो गई?''

''उनसे नहीं अपने आप से-चेहरे जो एक जैसे हैं हमारे।''

''चेहरों में तो नहीं लेकिन आत्माओं में तो ज़मीन-आसमान का अंतर है।''

''चेहरों को पढ़ना और आत्मा में झांक कर देखना बहुत मुश्किल है पूनम...तुम्हें तो केवल उसी दिन विश्वास होगा जब तुम्हारा रणजीत तुम से आन मिलेगा।'' रशीद ने थोड़ा गुस्से में कहा।

पूनम ने झट बात बदलकर पूछा-''लेकिन तुम पाकिस्तान कैसे, लौटोगे? सीमा पर तो बड़ी कड़ी निगरानी होती है।''

''मेरे आदमियों ने सब प्रबंध कर लिया है-परसों रात की गाड़ी से अमृतसर से सिक्खों का एक टोला पंजा साहब की यात्रा के लिए जा रहा है-उसी टोले में एक नकली दाड़ी वाला सिख भी होगा।''

''ओह-तो तुम सिख बनोगे?''

''तो क्या हुआ? इस काम में हमें कई भेष धारण करने पड़ते हैं।'' रशीद ने मुस्कराते हुए कहा।

पूनम ने एक गहरी दृष्टि उसके चेहरे पर डाली। अंधेरे में वह कुछ और भी रहस्यमयी लग रहा था। कुछ देर वह उसे यूंही चुपचाप देखती रही और फिर एक जम्हाई लेकर अपने कमरे में लौट गई। रशीद ने एक सिगरेट और सुलगा लिया और खड़े-खड़े न जाने कितनी रात गए तक विचारों के ताने-बाने बुनता रहा।

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