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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''अचानक देखकर...या डर के मारे...।''

''डर...। किस बात का डर?'' उसने झिझकते हुए पूछा।

''अपने पापों का डर...अपने अपराधों का डर।''

''यह तुम क्या कह रही हो? कैसा पाप...कैसा अपराध?''

''किसी की भावनाओं से खेलना, किसी से विश्वासघात करना, प्रेमी का रूप धारण करके दूसरे की मंगेतर को अपने अपवित्र गंदे हाथों से छूना...बेटा बनकर किसी मां की ममता को ठगना...यह सब पाप नहीं तो क्या है? बोलो...जवाब दो?'' वह गुस्से से ज़मीन पर पैर पटकती हुई बोली।

रशीद पूनम के मुंह से यह बातें सुनकर सचमुच घबरा गया था...अंतर की ग्लानि से वह पूनम से आंखें नहीं मिला पा रहा था। समझने में उसे देर न लगी कि उसका सारा भेद पूनम पर खुल चुका है और इसकी ज़िम्मेदार रुख़साना है जो उस रात अपना अपमान सहन न कर सकी थी...उसे पहले ही आशंका थी कि ऐसी स्थिति में वह औरत कुछ भी कर गुज़रेगी। रशीद को चुप देखकर पूनम ने तिलमिलाते हुए पूछा-''चुप क्यों हो गए?''

''तुमने मेरा भेद खोलकर मुझे मौन कर दिया है?''

''लेकिन तुमने ऐसा क्यों किया? किसी की भावनाओं से खेल-कर तुम्हें क्या मिला?''

''अपने देश और कर्त्तव्य के लिए कभी-कभी इन्सान को बहुत सी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है...ऐसी ही एक परीक्षा मेरे लिए तुम भी बन गई थीं।''

''लेकिन तुम इस परीक्षा में सफल नहीं हो सके मेजर रशीद...तुम अपने ही बुने जाल में स्वयं फंस गए। जानते हो अब मैं तुम्हारी पोल सबके सामने खोलकर रख दूंगी।''

''तुम ऐसा नहीं कर सकोगी-पूनम।'' वह उसकी आंखों में देखता हुआ बोला।

''क्यों? मुझे कौन रोकेगा?''

''तुम्हारा रणजीत...।'' रशीद मुस्करा उठा।

''क्या?'' वह कुछ न समझते हुए बोली।

''हां पूनम...तुमने अगर मेरा भेद खोलकर मुझे गिरप्तार करा दिया तो तुम्हारा रणजीत ज़िन्दा नहीं लौट सकेगा।''

''क्या वह ज़िन्दा है...?'' अविश्वास से उसे देखते हुए पूनम ने पूछा। उसका दिल अनायास धड़क उठा था।

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