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गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

यह कहकर मां पूनम को खींचती हुई अंदर वाले कमरे में ले गई जहां शादी के कपड़े और गहने खुले रखे थे। उन्होंने एक-एक गहना और एक-एक जोड़ा उठाकर पूनम को दिखाया। मां पूनम और रणजीत की शादी का वर्णन कुछ इस भावुकता भरे ढंग से कर रही थीं कि कई बार अनायास पूनम की आंखें भी छलछला उठीं। उसने सोचा अगर मां को यह मालूम हो गया कि जिसकी शादी का प्रबंध वह इतने चाव से कर रही है वह उसका बेटा रणजीत नहीं बल्कि एक पाकिस्तानी जासूस है तो उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा...उनके सारे सपने टूट कर बिखर जाएंगे और क्या जाने वह इस आघात को सहन भी न कर सकें। यह सोचकर पूनम ने यह फैसला कर लिया कि वह मां की खुशियों पर अचानक बिजली नहीं गिराएगी। मां की प्रसन्नता के लिए वह उन कपड़ों और गहनों की प्रशंसा करती रही।

मां रणजीत को बुलाने के लिए जब गौरी को बाग़ भेजने लगीं तो पूनम ने उसे रोकते हुए मां से कहा-''उन्हें बुलाने की क्या ज़रूरत है...काम समाप्त हो जाने पर आप ही आ जाएंगे।''

''भैया को आते-आते तो शाम हो जाएगी...तुम स्वयं ही बाग़ क्यों नहीं चली जातीं भाभी!'' गौरी ने मुस्कराते हुए पूनम से कहा।

''हां पूनम...गौरी ठीक कहती है...।'' मां ने गौरी की बात का समर्थन किया, ''तुम चली जाओगी तो दोपहर के खाने के लिए वह समय पर घर आ जाएगा।''

बाग़ में एक शेक सरीखे गोदाम में रशीद सेवों की पेटियां पैक करवा रहा था। कई मज़दूर काम में जुटे हुए थे और इस बात पर हैरान थे कि आज से पहले रणजीत ने बाग़ में इतनी लग्न से कभी काम नहीं किया था।

मीठे, रसीले और लाल सेवों का ढेर देखकर अचानक रशीद का भी जी ललचाया। उसने एक सेव उठाकर खाना शुरू कर दिया...ऐसे मीठे और स्वादिष्ट सेव उसने कश्मीर में भी नहीं खाए थे...तभी उसे मां के कहे यह शब्द याद आ गए ''इन सेवों में मेरे पसीने से और रंगत मेरे खून से आती है।''

बाहर अचानक कुछ आहट हुई और रशीद सेव खाते-खाते रुक गया। उसने पलटकर देखा तो शेक के बाहर खड़ी पूनम गुस्से में उसे घूर रही थी। रशीद के हाथ से सेव छूटकर नीचे गिर गया। पूनम की आंखों में छुपे तूफ़ान का उसे कुछ आभास हो गया था। वह झट उठकर बाहर आते हुए बोला-''पूनम...तुम...।'' पूनम को छूने के लिए उसका बढ़ा हुआ हाथ वहीं रुक गया।

''रुक क्यों गए?'' वह गुस्से में दांत पीसती हुई बोली।

''यूंही-तुम्हें इस समय अचानक देखकर सकता-सा हो गया है मुझे।'' रशीद ने मुस्कराने का प्रयत्न करते हुए कहा।

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