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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रशीद ने जेब से सिगरेट निकालकर सुलगाया...उसके मन की शांति लौट आई थी। कुछ देर मौन रहकर सिगरेट का एक कश लेकर वह बोला-''हां पूनम...मुझपर विश्वास करो और निश्चिंत रहो...तुम्हारा रणजीत जिन्दा है।''

''लेकिन पुलिस वालों ने यह भेद अगर रुख़साना से उगलवा लिया तो?'' पूनम ने डरते-डरते पूछा।

''पुलिस अब उससे कुछ नहीं उगलवा सकती'' रशीद ने सिगरेट का एक और कश लेकर गम्भीरता से कहा।

''क्यों...?''

''उसके कुछ बोलने से पहले ही हमारे 'रिंग' वालों ने पुलिस के 'लाक अप' में उसे गोली का निशाना बना दिया है।''

उसके रुखे कठोर स्वर पर पूनम कांप उठी...वास्तव में वह एक खतरनाक पाकिस्तानी जासूस है...तो फिर उसे रणजीत से क्यों सहानुभूति होने लगी...वह रणजीत को कभी आज़ाद नहीं कराएगा बल्कि उल्टा उसके विरुद्ध कोई और जाल बुन रहा होगा। इस धमकी की आड़ में वह अपना जासूसी का काम पूरा करना चाहता है। इसी असमंजस में वह देर तक खड़ी इस रहस्यमयी पाकिस्तानी जासूस को देखती रही...फिर अचानक दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपाकर रोने लगी। रशीद ने आगे बढ़कर उससे कुछ कहना चाहा लेकिन वह एक झटके से पलटकर भाग खड़ी हुई और बाग़ के बाहर जाने लगी।

रशीद ने लपक कर उसे रोकना चाहा किन्तु फिर कुछ सोचकर रुक गया। कुछ देर सिगरेट के लम्बे-लम्बे कश लेता यह उसे भागते देखता रहा और फिर सिगरेट बुझाकर शैक में लौट गया। उसे विश्वास था कि पूनम अब उसका भेद किसी से भी न कह सकेगी...मां से भी नहीं।

रात मां पूनम और रशीद को सामने विठाकर अपने हाथ का बना खाना खिला रही थीं। पूनम खिंची-सी च्रुपचाप बैठी थी। रशीद ने मां को आज दिन भर की कार्यवाही का ब्यौरा दिया और विश्वास दिलाया कि कल दोपहर तक वह सारा माल पैक करवा के ट्रक पर लदवा देगा। मां ने उसके काम की सराहना करते हुए प्यार से कहा-''चलो अच्छा हुआ...शादी से पहले तुमने अपनी जिम्मेदारियों को संभाल तो लिया।''

'शादी' का शब्द सुनकर पूनम अचानक यूं चमक उठी जैसे किसी ज़हरीले कीड़े ने उसे काट लिया हो। रशीद ने उसकी बेचैनी को झट भांप लिया और बात बदलते हुए मां से बोला-''यह क्या मां...तुम मुझे ही खिलाए जा रही हो-पूनम की थाली तो कब से खाली है।''

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