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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

और रशीद अपनी शादी पर लिए गए फ़ोटो को देखने लगा। मां ने उसे धीरे से परे हटाते हुए कहा-''अरे...इसे क्या देखता है। अब जो तस्वीर मैं तुझे दिखाऊंगी, उसे देखकर तू खुशी से नाच उठेगा।'' यह कहते हुए मां ने पांचवां पन्ना पलटकर रशीद के सामने करते हुए बड़े स्नेह से कहा-''यह है मेरी बहू का फ़ोटो...।''

फ़ोटो में सलमा ज़री के काम वाले लाल जोड़े में दूल्हन बनी शर्माई बैठी थी। मां ने उसे देखकर निहाल होते हुए कहा-''देख...देख...कितनी सुन्दर है तेरी भाभी...बिलकुल चांद का टुकड़ा। इसका नाम है सलमा।''

रशीद के मनोमस्तिष्क को निरन्तर इतने तीव्र झटके लग रहे थे कि उसकी सुध-बुध उड़ी जा रही थी। उसका सारा शरीर जैसे किसी भूकम्प की लपेट में आ गया हो। वह कांप रहा था...उसके सारे विचार, सब भावनाएं बिखर गईं थीं...मानो कोई ग्रह अपनी धुरी से अलग हो जाए...उसकी परिक्रमा की कोई दिशा न रहे। कुछ देर वह मूर्तिमान, स्थिर खड़ा रहा...फ़िर बड़ा मुश्किल से संभलने का प्रयत्न करते हुए उसने कहा-''ये तस्वीरें तुम्हारे पास कहां से आ गईं...ये तो...।''

घबराहट में वह यह कहने जा रहा था कि ये ही तस्वीरें उसके एलबम में भी थीं...लेकिन अचानक वह रुक गया। मां अपनी बहू की तस्वीर देखने में मगन थी। उसे रशीद की इस घबराहट का जरा भी आभास न हो पाया। मां ने एलबम से एक फ़ोटो निकालकर रशीद को देते हुए कहा-''ये हैं वह मौलाना जी, मेरी व्याकुल आत्मा की शांति के लिए यें तस्वीरें भेजते रहे हैं। ये मनुष्य नहीं, देवता हैं...इन्हें नमस्कार करो बेटे। ऐसी महान आत्माएं कभी-कभी ही जन्म लेती हैं।''

रशीद के हाथ में मौलाना नुरुद्दीन की तस्वीर थी, जिन्हें कुछ देर पहले तक वह अपना बाप समझता रहा था। अभी पिछले साल ही इनका देहांत हुआ था।

आज इस भेद से पर्दा उठा था...कि वह उसके वास्तविक पिता नहीं थे। रशीद सोच रहा था, क्या कोई दूसरे के बच्चे को इतना निःस्वार्थ, ममतापूर्ण प्यार दे सकता है, जितना मौलाना ने उसे दिया था। उसे उनकी बेगम की शकल याद नहीं थी, क्योंकि वह उसके बचपन ही में स्वर्गवासी हो गई थीं। मौलाना ने अपने असीम स्नेह और प्यार से इस अभाव को रशीद को कभी अनुभव नहीं होने दिया। वह उसके लिए मां-बाप दोनों बन गए थे। मां ठीक ही कहती हैं...सचमुच वह इंसान नहीं देवता थे। इस देवता की महानता पर उसका सिर झुक गया और उसने दोनों हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया। फिर भीगी आंखों से मां की ओर देखता हुआ सोचने लगा...मां भी तो किसी देवी से कम नहीं हैं...जिनके दिल के दो टुकड़े हैं...एक टुकड़े से 'अल्लाह-अल्लाह' की आवाज़ आती है और दूसरे से 'राम-राम' की...उसे इन दोनों आवाज़ों में कोई अंतर नहीं अनुभव होता। फिर उसकी कल्पना धारा रणजीत की ओर मुड़ गई...उसका हमशकल सगा भाई उसी के कारण पाकिस्तान की किसी जेल की तंग और अंधेरी कोठरी में पड़ा सिसक रहा होगा...तड़प रहा होगा। इस विचार से वह कांप उठा और उसने घबराकर मां की ओर देखा। वह अभी तक प्यार से सलमा की तस्वीर देखे जा रही थी।

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