ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''बरसों ठोकरें खाने के बाद जब मेरे जीवन में थोड़ी स्थिरता आ गई और कड़ा परिश्रम करके मैंने अपने हालात सुधारे तो इतनी देर हो चुकी थी कि मैं चाहती भी तो शायद मौलाना उसे मुझे लौटा न सकते। परमात्मा ने उन्हें संतान नहीं दी थी और उन्होंने उसे अपना सगा बेटा मानकर तन-मन से प्यार किया था...अब वह उन्हीं का बेटा था। मैं इसे हरि इच्छा समझकर चुप रह गई।''
मां चुप हो गई...उनकी आंखों से टप-टप आंसू बहे जा रहे थे।
रशीद भावुकता में डूबा जैसे कोई फ़िल्म देख रहा था। उसके मस्तिष्क में आंधियां चल रही थीं...जैसे सृष्टि लड़खड़ा गई हो। मां को चुप होते देखकर उसने कंपकंपाती और कराहती हुई आवाज़ में पूछा-''लेकिन मां...पाकिस्तान से आने के बाद तुम्हें अपने बच्चे के हालात कैसे मालूम होते रहे?''
''जानना चाहते हो...?'' मां ने आंसू पोंछते हुए कहा-''मुझे एक साल पहले तक के अपने बच्चे के सारे हालात मालूम हैं।''
फिर मां ने उठकर अलमारी में से एक एलबम निकाला और उसे रशीद को दिखाती हुई बोली-''इसमें मेरे जीवन का वह भेद बंद है, जिसे मेरे जीते जी शायद कोई नहीं जान पाता... अगर आज मेरे मुसलमान बच्चे की याद ने मेरी ममता को पागल न कर दिया होता। बेटा रणजीत...मेरे दिल के दो टुकड़े हैं-एक से अल्लाह-अल्लाह की आवाज़ आती है तो दूसरे से राम-राम की। इन दोनों आवाज़ों में मुझे कोई अन्तर अनुभव नहीं होता...जैसे मेरे दोनों बच्चों की शक्ल-सूरत में रत्ती भर भी अंतर नहीं है।''
और उसने एलबम का पहला पन्ना खोलकर रशीद को दिखाते हुए कहा-''देख...यह मेरे लाल का उस समय का फ़ोटो है, जब उसका ख़तना करने के लिए उसे दूल्हा बनाया गया था।''
रशीद ने बेचैनी से झुककर देखा-फ़ोटो में नन्हा रशीद दूल्हा बना खड़ा था। मां ने दूसरा पन्ना पलटते हुए कहा-''यह उस समय का फ़ोटो है, जब उसने कुरान पढ़ना आरम्भ किया था।''
रशीद ने ध्यान से देखा...फ़ोटो में नन्हा रशीद मौलाना के सामने कुरान खोले बैठा था। मां ने तीसरा पन्ना पलटा।
''यह तब का फ़ोटो है, जब उसने बी० ए० की डिग्री ली थी।''
रशीद ने बेचैनी से इस फ़ोटो को भी देखा, जिसमें वह गाउन पहने हाथ में डिग्री लिए खड़ा था।
''अब मेरे लाल का खास फ़ोटो देखो।'' मां ने चौथा पन्ना पलटते हुए कहा-''यह उस समय का फ़ोटो है, जब वह दूल्हा बना था।''
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