ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''क्या देख रही हो मां?'' रशीद ने जैसे डरते-डरते पूछा।
''अपनी बहू को देख रही हूं। इसे देखकर मेरा जी ही नहीं भरता। तू पूनम को दुल्हन बनाकर लाएगा तो मैं उसे भी ऐसे ही कपड़े पहनाऊंगी...। और मेरा प्यारा बेटा रशीद...काश वह जानता उसकी अभागिन मां उसके लिए कितने बरसों से तड़प रही है। उसकी जिंदगी के लिए भगवान से कैसी-कैसी प्रार्थना की है। मैं जब तेरी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करने मन्दिर में जाती हूं तो उस की रक्षा के लिए भी प्रार्थना करना कभी नहीं भूलती। वह भी फ़ौज में नौकर है न...!''
मां की आवाज़ भर्रा गई और उनकी आंखों से ममता के आंसू टपक पड़े। क्षण-भर रुककर उन्होंने अपने आंसू पोंछे और बोलीं- ''मुझे पता होता तो पहले ही तुझे अपने जीवन का यह भेद बता देती। तू पाकिस्तान में तो पहुंच ही गया था...वहां अपनी भाभी और भाई से किसी प्रकार मिल आता। खैर, अब तो लड़ाई बन्द हो ही गई है... भगवान ने चाहा तो दोनों देशों में आना-जाना भी शुरू हो जाएगा। ईश्वर करे मेरा बेटा वहां सकुशल हो... तू अपनी शादी में अपने भाई और भावज को ज़रूर बुलाना।''
मां का एक-एक शब्द रशीद के दिल को चीरता चला जा रहा था। वह अब तक उसे रणजीत समझे हुए थी। उसका जी चाह रहा था कि वह बच्चों के समान उसकी गोद में सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगे और उसे बता दे कि वही उसका बिछड़ा हुआ लाल है, जिसके लिए वह तड़प रही है। वही रणजीत का भाई है, जिसे वह उसकी शादी में बुलाना चाहती है...लेकिन वह कुछ भी न कह सका। यह कैसी जानलेवा मजबूरी और बेबसी थी...वह केवल निराशा भरी दृष्टि से मां के भोले-भाले चेहरे को देखता रहा।
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