ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
सहसा शोर-गुल सुनकर मस्ज़िद के हुजंरे से एक मौलाना बाहर निकले। उन्होंने मुझे दो बच्चों के साथ दरवाजे से लगी कांपते देखा तो सारी बात समझ गए। वह तेज़ी से मेरी ओर लपके, उनका तेजस्वी चेहरा देखकर न जाने क्यों मेरे मन को ढाढ़स-सी बंध गई। वह मेरे पास आए तो मैं उनकी टांगों से लिपट कर रो पड़ी।
''भगवान के लिए मेरे बच्चों को बचा लीजिए मौलवी साहब।''
उन्होंने स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरा और सांत्वना देते हुए बोले-''घबराओ मत बहन...तुमने खुदा के घर में पनाह ली है...तुम्हारा कोई बाल तक बाका नहीं कर सकता।''
फिर वह मस्ज़िद का दरवाज़ा खोलकर गुंडों के सामने डट गए और उन्हें लताड़ा-''शर्म नहीं आती तुम्हें। एक बेसहाय औरत और उसके मासूम बच्चों को क़त्ल करने चले हो...कैसे मुसलमान हो तुम? हजूर का फ़रमान भी भूल गए...तुम्हारे पैग़म्बर ने बूढ़ों, औरतों और बच्चों पर रहम करने की तालीम दी है।''
''हिन्दुस्तान में हमारे बच्चों, औरतों और बूढ़ों पर रहम नहीं किया जा रहा है...हम भी इन्हें नहीं छोड़ेंगे।'' कोई गुंडा ज़ोर से दहाड़ा...और फिर सब एक साथ चीख़ पड़े-''हां-हां, हम भी वही करेंगे जो हिन्दुस्तान में हो रहा है।''
यह सुनकर मौलाना के चेहरे पर और भी तेज़ छा गया...उन्होंने भारी आवाज़ में कहना आरम्भ किया-''हिन्दुस्तान में अगर लोग गंदगी खाने लगेंगे तो क्या तुम भी वही करोगे...बोलो...जवाब दो। अगर वहां बेगुनाहों पर जुल्म हो रहा है तो इसका बदला खुदा लेगा। तुम अपनी पाक़ ज़मीन पर बेगुनाहों का खून बहाकर ज़ालिमों की सफ़ में क्यों खड़े होते हो? क्या तुम्हें अल्लाह और रसूल के फ़रमान का कोई पास नहीं रहा? क्या तुम सिर्फ़ नाम के मुसलमान रह गए हो? इस्लाम का नाम तब ऊंचा होता, जब हिन्दुस्तान में मुसलमानों पर ढाए जाते जुल्मों के बावजूद पाकिस्तान में हिन्दू अमन और चैन की ज़िन्दगी बसर करते।''
क्षण भर के लिए रुक कर वह फिर बोले-''क्या तुम फ़तहे-मक्का का वह वाकिआ भूल गए, जब वहां के काफ़िरों की ज़िन्दगियां रसूल अल्लाह की मुट्ठी में थीं...ये वे लोग थे जिन्होंने बेदर्दी से मुसलमानों को क़त्ल किया था और खुद रसूल पर जुल्म के पहाड़ तोड़े थे...उन्हें बार-बार क़त्ल करना चाहा था। हजूर चाहते तो एक इशारे में इन सबको मौत के घाट उतार देते...लेकिन जानते हो हमारे पाक नबी ने क्या किया? उन्होंने एलान कर दिया कि इस्लाम के बड़े-बड़े दुश्मनों को माफ़ किया जाता है...और इसका नतीजा सब जानते हैं। मक्के की जमीन पर खून का एक कतरा भी नहीं टपका और बिना ज़बरदस्ती के इस्लाम के सब दुश्मन मुसलमान हो गए। यह थी इस्लाम की तालीम। इस तालीम ने सारी दुनियां का दिल जीता था...और आज इसी इस्लाम के नाम पर तुम जुल्म और बेरहमी से अपने अज़ीम मज़हब के नाम को बट्टा लगा रहे हो।''
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