ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''और क्या लिखा था उसने अपनी सासको...? मेरी शिकायत तो ज़रूर की होगी।''
''उसने तो और कुछ नहीं लिखा था...हां, उसकी आंटी ने लिखा था...।''
''अच्छा...क्या लिखा था?'' रशीद ने उसकी बात काटते हुए कहा।
''वही शादी का मांग...। पहले तो लड़ाई का बहाना था...इसके बाद तुम लापता हो गए...फिर क़ैद की खबर...लेकिन अब...अब तो अधिक नहीं टाला जा सकता।''
''ओह मां...इतनी जल्दी क्या है?''
''तुम्हें जल्दी न होगी बेटे, लेकिन मुझे है। पूनम बिचारी का जीवन भी बड़ा कठिन गुज़रा है। पागल पिता की देखभाल में वह जीवन के हर सुख से वंचित होकर रह गई है। शादी हो जाए तो ज़रा चैन की सांस लेगी।''
''लेकिन शादी-के बाद तो वह मेरे साथ आ जाएगी...उसके डैडी को वहां कौन संभालेगा?''
''यह सोचना उनका काम है, हमारा नहीं बेटे! बस, अब तू अधिक टाल-मटोल मत कर। अब मैं तेरा कोई बहाना नहीं सुनूंगी। मैंने पुरोहित से महूरत भी निकलवा लिया है...अगले महीने की अठारह तारीख का शुभ दिन निकला है। बस, मैं अब और नहीं टालूंगी।''
''अरे नहीं मां...इतनी जल्दी शादी का प्रबंध कैसे हो सकता है। क्या यह भी कोई गुड़िया-गुड्डे का खेल है?'' रशीद घबरा कर बोला।
''यह मेरा काम है...तू चिन्ता न कर...सब प्रबंध हो जायेगा।''
रशीद ने बहस करना उचित न समझा। उसने सोचा, अगले महीने की अठारह तारीख के तो अभी बहुत दिन हैं, इस बीच परिस्थितियां न जाने क्या करवट लेंगी। वह धीरे-धीरे दूध के घूंट भरने लगा। गिलास ख़ाली करके जब उसने मां की ओर देखा तो मां आंचल से अपनी भीगी आंखें पोंछ रही थीं।
''क्यों मां...तुम रो क्यों रही हो?'' रशीद ने घबराकर पूछा।
''कुछ नहीं बेटा...ऐसे ही कुछ ध्यान आ गया था। तेरी शादी के अवसर पर मैंने क्या-क्या सोचा था। तू पाकिस्तान गया भी तो मुझे खबर न हुई।'' कहते हुए मां ने एक ठंडी सांस ली।
''पाकिस्तान जाने की खबर न हुई? होती भी तो तुम क्या करतीं मां।'' रशीद ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा।
''तेरी शादी पर तेरे भाई को निमंत्रण भिजवाती।''
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