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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

16

दिन भर रशीद से बातें करके भी मां का दिल नहीं भरा था। थकान के कारण रशीद को रात कुछ जल्दी नींद आने लगी तो मां ने कहा-''क्यों बेटा...इतनी जल्दी सो जाओगे?''

''हां मां...आज तो तुमने मुझे दौड़ा-दौड़ा कर थका दिया। इस मौसी से मिलने जाओ...उस चाचा के यहां चाय पियो...उस मामा के यहां खाना खाओ...सारा बदन टूट रहा है।''

''समाज में रहकर तो यह सब कुछ करना ही पड़ता है बेटे...और फिर यही लोग तो तुम्हारे यहां न होने पर सहारा बनते हैं। कितना दुःख बटाया है मेरा इन लोगों ने, तुम्हारे लड़ाई में चले जाने पर। अच्छा जाओ अपने कमरे में। मैं गौरी के हाथ दूध भिजवाती हूं।''

रशीद अपने कमरे में आ गया और एक कुर्सी पर बैठकर गौरी के दूध लाने की प्रतीक्षा करने लगा। समय काटने के लिए वह मेज़ पर रखी रणजीत की पुस्तकें और दूसरी चीज़ें देखने लगा। ढेर से कप और शील्डें रखी थीं जो रणजीत विभिन्न प्रतियोगिताओं में जीत कर लाया था। वह सोचने लगा कि रणजीत अवश्य स्कूल और कालिज में योग्य विद्यार्थी रहा होगा। मेज़ पर एक बड़े से फ्रेम में लगा रणजीत का वह फोटो भी था जिसमें वह गाउन पहने बी०ए० की डिग्री हाथ में लिए खड़ा मुस्करा रहा था। उसने भी डिग्री लेते समय ऐसी तस्वीर खिंचवाई थी।

रशीद फोटो को ध्यान से देखता हुआ मेज़ पर रखी पुस्तकों को एक-एक करके देखने लगा। अचानक उसे पुस्तकों के बीच रखी रणजीत की डायरी मिल गई। उसने डायरी खोली और सरसरी तौर से दो चार पन्ने पढ़े...वहीं डायरी में रखे पूनम के दो पत्र भी थे। रशीद पत्र खोलकर पढ़ना ही चाहता था कि उसमें से पूनम की तस्वीर निकलकर ज़मीन पर गिर पड़ी। वह तस्वीर उठाने के लिए झुका ही था कि उससे पहले पीछे से एक और हाथ ने झुककर तस्वीर उठा ली। रशीद ने पलटकर देखा। उसके सामने हाथ में दूध का गिलास लिए मां खड़ी मुस्करा रही थीं। गौरी के स्थान पर वह स्वयं ही अपने बेटे को सोने से पहले एक बार और देखने चली आई थीं। मां ने दूध का गिलास मेज़ पर रख दिया और तस्वीर रशीद को थमा दी। रशीद झेंप कर रह गया और खिसियानी आवाज़ में बोला- ''तुमने क्यों कष्ट किया मां?''

''गौरी सो गई है...सोचा कच्ची नींद में अब उस बिचारी को क्यों जगाऊं।''

''पूनम कैसी है मां?'' पूनम की तस्वीर को डायरी में रखते हुए उसने पूछा।

''क्यों? क्या तुम्हें कश्मीर में नहीं मिली?'' मां ने मुस्कराकर पूछा और फिर रशीद की बौखलाहट पर हंसकर बोली-''भले ही बेटा मुझसे अपनी बातें छिपाए, लेकिन मेरी बहू कभी झूठ नहीं बोलती। वह सब बातें मुझे लिख देती है।''

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