ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
थोड़ी देर में ही रशीद बिस्तर पर खर्राटे लेने लगा।
सुबह जब रशीद की आंख खुली तो सूरज की किरणें खिड़की से उसके कमरे में झांक रही थीं। वह उठकर सीधा मां के कमरे में जा पहुंचा। लेकिन वहां मां को न पाकर बाहर निकल आया और गौरी से पूछ बैठा-''मां कहां है?''
''मन्दिर के पीछे पुराने वाले बाग़ में गई हैं।''
मन्दिर की वजह से बाग़ ढूढने में रशीद को कोई दिक्कत नहीं हुई।
बाग़ में पहुंच कर उसने देखा मां एक कारिन्दे के साथ फावड़े से बालियां साफ़ करके पेड़ों की जड़ों तक पानी पहुंचा रही थीं। मां ने फावड़ा उठाया ही था कि पीछे से रशीद ने उसका फावड़ा थाम लिया। मां ने पलट कर देखा और फावड़ा छोड़कर बोली-''अरे बेटा तुम...तुम यहां क्यों आए?''
''मां बाग़ में काम करे और बेटा घर में आराम...यह नहीं हो सकता है।'' रशीद ने बच्चों की तरह मुंह फुलाकर कहा और फिर बोला-''मां, यह काम तो कोई मज़दूर कर देगा।''
''मज़दूरों के भरोसे भी कोई काम होता है बेटा...जब तक बाग़ का स्वामी अपने पसीने से वृक्षों को न सींचे, फलों में रस और मिठास नहीं आती।'' मां ने मुस्करा कर कहा और लाल-लाल सेवों से लदे पेड़ों की ओर संकेत करके बोली-''इन सेवों को देख रहे हो...इनमें मेरे लहू की सुर्खी और मेरे पसीने का रस है... मेरे बाग़ों के सेव सारे इलाके में सबसे प्रसिद्ध हैं। जब मैं फलों से लदे बाग़ को देखती हूं तो मेरा कलेजा गज़ भर का हो जाता है...मुझे ऐसा लगता है, जैसे यह बाग़ मेरा भरा परिवार है, जिसमें मेरे बच्चे...मेरे पोते-पोतियां किलकारियां मारते खेल-कूद रहे हैं। बेटे...बस अब तू जल्दी से शादी कर ले ताकि मेरा घर सचमुच इस बाग़ की तरह फूलों और फलों से भर जाए...उसमें सचमुच तेरे बच्चों की किलकारियां गूंजने लगें...बोल, अब मैं करूं शादी की तैयारी?''
''हो जाएगी शादी भी...इतनी जल्दी भी क्या है मां...?'' रशीद ने मां के हाथ से फावड़ा लेते हुए कहा और स्वयं पानी की नाली खोदने लगा।
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