ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''नहीं मां...तुम कष्ट मत करो।'' रशीद ने उसे रोकते हुए कहा। ''कष्ट कैसा बेटा...मां को तो बेटा को खिलाने में आनंद मिलता है...छोड़ दे मुझे। हां, पहले उठ...चल मेरे साथ।''
मां रशीद को साथ लेकर घर के छोटे से मन्दिर में आई...भगवान की मूर्ति को प्रसाद चढ़ाकर उन्होंने रशीद को चरणामृत दिया और' भगवान के चरणों से भभूत लेकर उसके माथे पर लगाई।
न जाने क्यों आज रशीद को इन बातों से ज़रा भी आपत्ति न हुई। उसने बड़ी श्रद्धा से मां के हाथों से चरणामृत ले कर पिया, माथे पर भभूत लगाई और भगवान के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। शायद मां के अथाह स्नेह ने उसके मन में खड़ी घृणा की दीवार ढा दी थी...अब उसे मन्दिर, मस्जिद, ओम् और अल्लाह में कोई अंतर दिखाई नहीं दे रहा था।
मां ने अपने हाथों बनाए परौठे और सरसों का साग जब उसके सामने लाकर रखा तो उनकी सुगंध ही से बेचैन होकर वह खाने पर ऐसा टूटा, जैसे बहुत दिनों का भूखा हो। उसने मां को भी खींच कर अपने साथ ही खाने पर बैठा लिया जितनी देर तक वह खाना खाते रहे, गौरी उनके पास खड़ी उनकी बातें सुनती रही। रशीद को आज खाने में जो आनन्द आया था, इतना आनन्द उसने आफ़िसर्स-मैस और बड़े-बड़े होटलों के बढ़िया खानों में भी कभी अनुभव नही किया था। उसने इतना खा लिया कि उसे नींद आने लगी। मां ने गौरी से कहा-''जा...जल्दी से बिस्तर लगा दे...नींद आ रही है मेरे बेटे को।''
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