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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''मां अकेली हैं ना...इतना दूध लेकर क्या करेंगी?''

''अकेली क्यों जी?...वह ब्राह्मणी की बेटी गौरी जो है उनके साथ।''

गौरी का नाम सुनकर वह चौंका। उसके जासूस साथी ने भी घर में एक और लड़की के बारे में उसे लिखा था।

''तो ठीक है भैया-कल से तुम दो लीटर दूध ही दे जाया करना।'' रशीद पास से गुजरते हुए एक और अजनबी की 'नमस्ते' का उत्तर देते हुए बोला-''अब यह सामान तो किसी तरह पहुंचवा-दो।''

''लाओ...मेरे सिर पर लाद दो।''

कालूराम ने सामान सिर पर उठा लिया और रशीद उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। इस समय कालूराम का मिल जाना बड़ा शुभ था क्योंकि रशीद उसके साथ बिना किसी कठिनाई के घर पहुंच सकता था।

रास्ते में बहुत से आते-जाते व्यक्तियों ने उसे पहचान कर प्रसन्नता से उसका अभिवादन किया। रशीद सबके अभिवादन का मुस्कराकर उत्तर देता हुआ जल्दी से आगे बढ़ता गया। एक अच्छे, पक्के मकान के दरवाज़े पर पहुंच कर कालूराम रुक गया...सो यह है रणजीत का घर...उसने सोचा और धड़कते दिल से अंदर प्रवेश करने लगा। यह उसकी परीक्षा की सबसे कड़ी मंज़िल थी...!

उसने दहलीज़ में पैर रखा भी नहीं था कि बारह-तेरह वर्ष की एक उठती हुई बालिका खुशी से 'रणजीत भैया' कहकर चीख़ पड़ी और उसे वहीं रोकती हुई बोली-''अरे-अरे ठहरो...पहले तेल तो छुआ लेने दो...मां जी को पता चल गया तो मेरी चोटी और कान एक कर देंगी।'' यह कहकर वह तेल लाने अंदर भाग गई।

रशीद की समझ में कुछ न आया कि यह तेल छुआना क्या होता है। उसे चुप देखकर कालूराम बोल उठा-''इन्हीं बातों से तो इसने मां जी का दिल जीत लिया है...और फिर वह भी इसे अनाथ लड़की को अपनी औलाद के समान ही चाहती हैं।''

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