लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वापसी

वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

363 पाठक हैं

सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''झूठ...वह तड़पकर चली गई...मैं सब समझती हूं...मैंने सब देखा।''

''देखा है तो क्या हुआ...तुम तो मेरी मज़बूरी समझती हो।''

''हां...लेकिन कहो तो तुम्हारी इस परेशानी को दूर कर दूं?'' रुख़साना ने नशे से लड़खड़ाती आवाज़ में कहा और ऐशट्रे में रखा रशीद का सिगरेट उठाकर अपने होंठों से लगा लिया।

''रुख़साना...।'' रशीद ने उसकी बात सुनकर डांटा।

''शर्माओ मत...मर्द आदमी हो...मैं तुम्हारे बदन में लगी आग की तपन को महसूस कर रही हूं...चाहो तो वह आग बुझा लो।'' यह कहते हुए उसने रशीद के गले में बाहें डाल दीं।

''तुम नशे में हो...।'' रशीद ने उसकी बांहें झटकते हुए कहा।

''हां, मैं नशे में हूं...लेकिन शराब के नशे में नहीं...तुम्हारे जवान और खूबसूरत बदन को देखकर मुझे नशा हो रहा है। तुम्हारी इन मख़मूर आंखों ने मुझे बेसुध बना दिया है। जो आग इस वक़्त मेरे अंदर भड़क रही है, तुमने न बुझाई तो मैं रातभर न सो सकूंगी।''

''शट अप...बंद करो यह बकवास और चली जाओ यहां से।'' रशीद गुस्से से बोला।

''मेरे इश्क को बकवास कहते हो...ऐसा जुल्म मत करो। देखो मेजर मैं तुम्हारी मज़बूरी को समझती हूं। जो तुम्हारे इश्क में जलकर अभी लौट गई उसे तो तुम छू नहीं सकते और जो तुम्हारी है, वह यहां से सैकड़ों मील दूर है...लेकिन मैं हाज़िर हूं...इस हाथ लगी नेमत को न ठुकराओ...अपनी आग को बुझा लो वर्ना दीवाने हो जाओगे।'' रुख़साना ने झूमते हुए कहा और झटपट बटन खोलकर उसने मैक्सी उतारकर फ़र्श पर डाल दी और अपने नग्न शरीर का प्रदर्शन करती हुई रशीद के सामने खड़ी हो गई।

रुख़साना की यह हरकत देखकर रशीद गुस्से से पागल हो गया, लेकिन उसने धैर्य से काम लिया...फ़र्श से उसकी मैक्सी उठाई और उसके नग्न शरीर पर डालते हुए बोला-''कपड़े पहन लो और यहां से चली जाओ।''

''और अगर मैं न जाऊं तो?''

''मैं तुम्हें ज़बरदस्ती बाहर निकाल दूंगा।''

''यह एक औरत की तौहीन होगी।''

''तौहीन उसकी होती है, जिसकी कोई इज्ज़त आबरू होती है...और तुम...तुम अपने-आपको बेहतर समझ सकती हो।''

''मैं तुम्हारा इशारा समझ गई मेजर। तुम मुझे बेआबरू कहना चाहते हो न...लेकिन मुझे इस गड्ढे में किसने धकेला? तुम लोगों ने...तुमने और जान ने...तुमने अपने कारोबार के लिए मेरे जिस्म को नीलाम किया...मुझे किसी की महबूबा बनाया। अपनी ग़र्ज़ के लिए, मुझे गुरनाम के साथ सोने के लिए मजबूर कर दिया...? और अब मैं रंडी हूं...ठीक है, अगर मैं रंडी हूं तो तुम लोग भड़वे हो...दलाल हो।''

रशीद से और उद्दंडता सहन न हो पाई। उसने तड़ाक से रुख़साना के गाल पर एक चपत धरते हुए कहा-''Get out...you bloody bitch?''

रुख़साना ने अपना गाल सहलाते हुए एक घायल नागिन के समान रशीद को देखा और तेज़ी से मैक्सी पहनते हुए कमरे से बाहर चली गई। कमरे से निकलते ही उसने पूरे बल से, झटके से दरवाज़ा बंद किया। एक धमाका हुआ और फिर एक सन्नाटा छा गया...एक न समाप्त होने वाला सन्नाटा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book