ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
पूनम ने सोचा शायद वह उसकी सीमा से अधिक घनिष्टता से नाराज़ हो गया है। सचमुच वह कुछ अधिक ही भावुक हो गई थी। यह सोचकर उसका गला भर आया। उसका जी चाहा कि वह पीछे भाग कर उससे क्षमा मांग ले, लेकिन फिर साहस ने उसका साथ न दिया। कुछ देर तक वह अकेली वहां स्थिर सी खड़ी रही और फिर कांपते क़दमों से बग़ीचे से बाहर निकल आई।
उसी बग़ीचे में एक अंधेरे कुंज का सहारा लिए रुख़साना उन दोनों का यह नाटक देख रही थी। शराब की गर्मी और उन दोनों के प्यार के रोमांचमयी दृश्य ने उसके बदन में आग सी लगा रखी थी। उसकी धमनियां जैसे तड़पने लगी थीं। उसने हाथ में पकड़ा शराब का गिलास अंतिम घूंट लेकर खाली किया और लापरवाही से उसे घास में एक ओर उछाल दिया...फिर अचानक रशीद की बेबसी का विचार आते ही एक खनकता हुआ ठहाका उसके कंठ से निकला।
रशीद उसी बौखलाहट में अपने कमरे तक चला आया। उसका शरीर ठंडे पसीने में नहाया हुआ था। उसने जल्दी से कोट उतार कर एक ओर फेंका और गले की नैकटाई ढीली करके बिस्तर पर गिर गया। अभी तक एक उन्माद सा उसके मस्तिष्क पर छाया हुआ था...एक ऐसा उन्माद जिसमें अब आत्म-ग्लानि सम्मिलित होकर उसे तड़पा रही थी। पूनम की भावनाओं को प्रोत्साहित करके उसे एक पीड़ा सी अनुभव हो रही थी...।
मानसिक उलझन को दूर करने के लिए उसने एक सिगरेट सुलगा लिया। सिगरेट लाइटर में भरी पूनम की आवाज़ ने उसे और भी बेचैन कर दिया...उसने झट लाइटर बुझाकर रख दिया और सिगरेट के लम्बे-लम्बे कश लेने लगा।
तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। वह चौंक गया। उसने सोचा, शायद पूनम फिर आ गई हो...और झट सिगरेट को ऐशट्रे में रखकर दरवाज़े तक चला आया। कुछ अजीब भाव से उसने दरवाज़ा खोल दिया, किन्तु उसके सामने पूनम नहीं बल्कि नशे में चूर रुख़साना खड़ी थी।
''तुम...!'' रशीद के होंठ थरथराए।
''हा, मैं...?।'' कहते हुए वह अंदर आ गई और नशीली आंखों से उसे देखती हुई बोली-''दरवाज़ा बंद कर दूं?''
फिर रशीद के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने पलटकर चटकनी चढ़ा दी और उसके निकट आती हुई बोली-''पूनम परेशान करके चली गई?''
रशीद जो अब तक उसके आने के बारे में सोच ही रहा था कि उसकी यह बात सुनकर सावधान हो गया और उसे अपने आप से अलग करता हुआ बोला-''उसे मैंने भिजवा दिया।''
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