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वापसी
वापसी
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9730
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आईएसबीएन :9781613015575 |
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''हां, तुमसे...ठीक उसी तरह तड़पाऊंगा जैसे तुमने मुझे तड़पाया है। तुम मेरी मां की ममता को घायल करके उसकी आत्मा को दुःख पहुचाना चाहते थे न? इतने दिनों तक तुमने मेरी मंगेतर की भावनाओं से खेलकर उसे अपने दिल बहलाने का खिलौना बना रखा था, अब मैं तुमसे सारा हिसाब चुकता करूंगा। तुम्हें अपनी क़ैद में रखकर प्रतिशोध की बर्छियों से तुम्हारा कलेजा छलनी कर दूंगा। जो काम तुमने अधूरा छोड़ा है, उसे मैं पूरा करूंगा। मैं तुम्हारे स्थान पर मेजर रशीद बनकर पाकिस्तान जाऊंगा...वहां के सब सैनिक भेद चुराकर अपने देश में भेजूंगा। और तुम्हारी सुन्दर पत्नी सलमा को आलिंगन में लेकर अपने दिल की प्यास बुझाऊंगा। कहो, कैसा लगेगा यह सब तुम्हें।''
''ओ शट-अप...यू रास्कल।'' रशीद गुस्से से चीख़ पड़ा और एक झटके से कुर्सी छोड़कर रणजीत के सामने आ खड़ा हुआ। रणजीत उसकी कंपन और उसके चेहरे का उतार-चढ़ाव देख कर अनायास हंसने लगा और फिर ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगा। उसके ठहाके रशीद के कानों में जैसे ज़हर टपकाने लगे। और फिर जब यह ठहाके उसकी सहन-शक्ति की सीमा पार कर गए तो उसने लपककर रणजीत के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया।
रशीद के बदन को सहसा जैसे किसी भूकंप ने झिंझोर कर रख दिया। उसने संभलने का एक असफल प्रयत्न किया तो अपने आप को उस टेबल लैंप से उलझा हुआ पाया जो मेज़ पर गिरकर औंधा हो गया था।
लैंप के गिरने से कमरे में अंधेरा हो गया। धुंधलके में उसने इधर-उधर दृष्टि दौडाई तो वहां कोई भी नहीं था। झट ही नींद की झोंक से उसका मस्तिष्क साफ़ हो गया और उसे पता चला कि यह केवल एक भयानक सपना था। उसका सारा शरीर पसीने से लतपथ था।
सपने का प्रभाव बहुत देर तक उसके मस्तिष्क पर बना रहा। अपने बिस्तर पर लेटा न जाने कब तक वह करवटें बदलता रहा और अपने अशांत दिल की धड़कनें सुनता रहा।
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