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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

14

पूनम का अर्ध पागल पिता मेज़ पर युद्ध क्षेत्र का नक्शा जमाए बैठा था। लकड़ियों और लोहे के कुछ टुकड़ों से बन्दूकें और तोपें बनाई गई थीं और टीन के डिब्बों से टैंकों तथा आरमर्ड कारों का काम लिया गया था। अब वह उस भूमि पर जहां सामने से दुश्मन आक्रमण करने वाला था, बारूद बिखेरकर सुरंगें बिछाने में व्यस्त था। साथ-साथ बह बोलता जा रहा था।

''सौ फ़ीसदी इसी तरफ़ से हमला होगा...पहले तो यह सुरंगें ही दुश्मन के परखचे उड़ा देंगी और अगर वह सुरंगों से बच भी गया तो हगारे जवान उसे गोलियों से भूनकर रख देंगे। लेकिन वेट...वेट...जवानों। एक भी फ़ायर हो गया तो दुश्मन होशियार हो जाएगा। पहले उसे चोट पर आने दो।''

तभी रशीद मकान में प्रविष्ट हुआ और पूनम का पिता चीख़ उठा।

''फायर...आ गया दुश्मन...फायर।''

रशीद जहां था, वही ठिठक कर रह गया। उसके कदमों की आहट सुनकर पूनम का पिता पलटा और चिनगारियां बरसाती आंखों से रशीद को घूरते हुए बोला-''कौन हो तुम?''

''जी...आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं रणजीत हूं-कैप्टन रणजीत।''

''ओह...कैप्टन रणजीत! तुम कहां चले गए थे? शायद तुम पाकिस्तान की क़ैद में थे?'' उसने मस्तिष्क पर बल देते हुए कहा।

''जी हां...आज ही क़ैद से छूटकर आया हूं।''

''मैंने तुमसे कहा था, मेरा एटम बम का फ़ार्मूला ले जाओ। तुम्हें दुनियां की कोई ताक़त नहीं हरा सकती। लेकिन तुम लोग तो मुझे पागल समझते हो। हालांकि पागल तुम खुद हो। बोलो...कौन पागल है। तुम या मैं?''

''जी...जो आपको पागल समझता है, वह पागल है।''

''गुड...अब तुम काफ़ी समझदार हो गए हो। लेकिन पूनम बिलकुल मूर्ख है। कैसे क़ैद हुए थे तुम?''

''जी...हमारी टुकड़ी जैसे ही हमले के बाद बिखरी, मैं दुश्मनों की पकड़ में आ गया।''

'''मैं भी सेकेंड वर्ल्ड वार में एक बार पकड़ा गया था। लेकिन उस वक़्त मेरे पास एटम बम का फ़ार्मूला नहीं था, वर्ना जापानी मझे बिलकुल गिरफ्तार न कर सकते। अब मैंने ब्रिटिश गवर्नमेंट को लिखा है कि वह मुझे फिर मैदाने-जंग में भेज दे तो अबकी बार मैं जापानियों को छठी का दूध याद दिला दूंगा। मैंने जंग के ऐसे-ऐसे नक्शे तैयार किए हैं कि...देखना चाहते हो तुम तो देखो।'' उसने मेज़ पर बनाए युद्ध क्षेत्र के नक्शे की ओर संकेत किया और फिर बोला-''यह लड़ाई का तरीका ख़ास मेरी ईज़ाद है। बीस साल तक सिर खपाने के बाद मुझे यह नक्शा सूझा है। अब मेरा एक जवान, दुश्मन के हज़ारों जवानों का मुकाबला कर सकता है। देखो-दुश्मन उस पहाडी की आड़ में छिपा हुआ है।'' उसने मेज के दूसरे किनारे पर रखे हुए एक पत्थर की ओर संकेत करते हुए कहा, और फिर रशीद की ओर हाथ उठाकर बोला-''होशियार... खबरदार, दुश्मन हमला करने ही वाला है। अब मैं सुरंग में आग लगाता हूं-माचिस है तुम्हारे पास?''

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