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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

पुलिस की छानबीन की रशीद पूरी जानकारी रखता था। जब टैक्सी ड्राइवर का बयान पुलिस में रिकार्ड हुआ तो उन्हें गुरनाम की मृत्यु के कारण पर संदेह होने लगा। ड्राइवर ने बताया कि वह एक लड़की का पीछा करता हुआ पीर बाबा के डेरे तक गया था। जब वह उसकी वापसी की प्रतीक्षा कर रहा था तो बहुत देर बाद एक आदमी उसके पास आया और उसका किराया चुकाकर बोला था कि सरदार जी को थोड़ा समय लगेगा इसलिए वह चला जाए। फिर जैसे-जैसे छानबीन आगे बढ़ती रही, उसके संदेह दृढ़ होता गया कि गुरनाम की मौत नदी में गिरने से नहीं हुई थी बल्कि पीर बाबा के डेरे पर हुई थी। उसके कमरे से मिली फ़िल्म की रील को जब प्रोजेक्टर पर चढ़ाया गया तो उसमें जान और पीर बाबा के चेहरे स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

यह रहस्य पाते ही पुलिस ने पीर बाबा के अड्डे पर छापा मारा। पीर बाबा और उसके चेलों को पकड़ लिया गया। लेकिन उन्हें वहां ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिल सका कि जिससे वे इस अड्डे को दुश्मनों का अड्डा सिद्ध कर सकें या यह प्रमाणित कर सकें कि गुरनाम की हत्या वहीं पर हुई है। फिर उन्होंने बयान और गवाहियों के आधार पर जान और रुख़साना के वारंट जारी कर दिए।

रशीद को यह जानकर संतोष हुआ कि 555 के मामले में उसका कहीं वर्णन नहीं है। इसका अर्थ था कि उस पर किसी को संदेह नहीं था और वह संतोष से इस देश में रहकर अपना निश्चित कार्य कर सकता था। लेकिन इस घटना को दृष्टि में रखते हुए कुछ समय के लिए उसे अपना कार्य बंद कर देना चाहिए।

तभी उसे रणजीत की मां की याद आ गई। जो अपने बेटे से मिलने के लिए तड़प रही होगी। हर चार दिन बाद उसका एक पत्र आ जाता था। उन पत्रों से उसकी बेचैनी स्पष्ट झलकती थी। पछले पत्र में तो उसने यहां तक लिख दिया था कि अगर वह तुरंत छुट्टी लेकर न आया तो वह स्वयं ही श्रीनगर पहुंच जाएगी।

मां कहीं अपने इकलौते बेटे से मिलने के लिए यह मूर्खता न कर बैठे...। यह सोचते ही वह घबरा गया। अब उसके पास टाल-मटोल का कोई बहाना नहीं था। उसने सोचा कि हो सकता है, अधिक टालने से किसी को उस पर संदेह न हो जाए। यह बात पहले ही उसकी दृष्टि में थी और इससे निबटने के लिए उसने अपनी 'रिंग' के एक आदमी को उस गांव में भेज दिया था। अब से छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र देना ही पड़ा।

अगले दिन उसकी छुट्टी की प्रार्थना स्वीकार हो गई। उसने घर आकर अलमारी में से वह रजिस्टर्ड पत्र निकाला जो आज ही उसे प्राप्त हुआ था और उसके जासूस साथी ने मनाली से भेजा था। इस पत्र में रणजीत की मां की तस्वीर थी। उसकी आदतों, व्यवहार, संबंधियों इत्यादि का पूरा ब्यौरा था।

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