लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वापसी

वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

363 पाठक हैं

सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रुख़साना का नाम सुनते ही रशीद के बदन में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई और उसने झट पूछा-''वह लड़की मिली क्या?''

''नहीं, वह अपने दोस्त जान के साथ कश्मीर छोड़ कर भाग गई है।''

''कहां?''

''पुलिस इसकी छानबीन कर रही है।''

''मुझे विश्वास है इंस्पेक्टर!'' रशीद ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा-''मेरे दोस्त की मौत का कारण वे लोग ज़रूर जानते होंगे।''

''यह तुम कैसे कह सकते हो?'' कर्नल मजूमदार ने प्रश्न किया।

''उस रात कर्नल चौधरी की विदाई की पार्टी में मेरे दोस्त और जान की झड़प हो गई थी। उस समय रुख़साना उसके साथ थी।''

''और दो दिन के बाद उसकी मंगेतर गुरनाम के साथ शराब पी रही थी...अजीब बात है।'' कर्नल मजूमदार ने आश्चर्य प्रकट किया।

''पीने वालों का क्या भरोसा सर...एक रात उलझते हैं, दूसरी रात दोस्त बन जाते हैं।'' रशीद के स्थान पर इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया। और रशीद से संबोधित होकर पूछ बठा-''क्या आप रुख़साना और जान को जानते थे?''

''जी नहीं...बस उसी दिन आफ़िसर्स मैस में सरसरी-सी मुलाकात हुई थी।''?

''वे लोग किसके गेस्ट थे?'' कर्नल ने पूछा।

''मुझे नहीं मालूम सर।'' रशीद ने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।

कुछ और पूछताछ तथा पुलिस की कार्रवाई के बाद गुरनाम की लाश फ़ौज के हवाले कर दी गई। रशीद भारी मन के साथ उसकी लाश अपनी यूनिट में ले आया। वैसे भी गैरिज़न ड्यूटी पर होने के कारण उसके अंतिम संस्कार का उत्तरदायित्व उन्हीं पर था।

रशीद ने अपने हाथों से अपने दोस्त की अर्थी सजाई और पूरे फ़ौजी सम्मान के साथ उसका दाह-संस्कार हुआ। जब उसने दोस्त की लाश को आग के हवाले किया तो हवा में फ़ायर हुए और फ़ौजी बिगुल की उदास धुन से सारा वातावरण शोक-ग्रस्त हो गया। रशीद की आंखों में अनायास आंसू उमड़ आए। इस बात का उसे बड़ा दुःख था कि ड्यूटी निभाते हुए उसने रणजीत के दोस्त की जान ले ली।

गुरनाम का चंद दोस्तों के अतिरिक्त इस दुनिया में कोई न था। पत्नी शादी के थोड़े दिनों बाद ही मर गई थी। औलाद से वह वंचित रहा। ले-देकर रिश्ते के एक चाचा थे, जिन्होंने उसकी खेती-बाड़ी संभाली हुई थी। वे उसकी मौत की खबर सुनकर कश्मीर आए और रीति के अनुसार गुरनाम के फूल लेकर चले गए। जाने से पहले जब उन्होंने गुरनाम का असबाब मांगा तो पुलिस ने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब तक पुलिस की कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती, वह असबाब पुलिस के अधिकार में रहेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai