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उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729
आईएसबीएन :9781613013434

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राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा


पुरुरवा
महाश्चर्य! अघट घटना! अद्भुत अपूर्व लीला है!
यह सब सत्य-यथार्थ या कि फिर सपना देख रहा हूँ?
पुत्र! देवि! मैं पुत्रवान हूँ? यह अपत्य मेरा है?
जनम चुका है मेरा भी त्राता पुं नाम नरक से?
अकस्मात हो उठा उदित यह संचित पुण्य कहाँ का?
अमृत-अभ्र कैसे अनभ्र ही मुझ पर बरस पड़ा है?
पुत्र! अरे मैं पुत्रवान हूँ, घोषित करो नगर में,
जो हो जहाँ, वहीं से मेरे निकट उसे आने दो।
द्वार खोल दो कोष-भवन का, कह दो पौर जनों से
जितना भी चाहें, सुवर्ण आकर ले जा सकते हैं

ऐल वंश के महामंच पर नया सूर्य निकला है;
पुत्र-प्राप्ति का लग्न, आज अनुपम, अबाध उत्सव है।
पुत्र! अरे कोई संभाल रखो मेरी संज्ञा को,
न तो हर्ष से अभी विकल-विक्षिप्त हुआ जाता हूँ।
पुत्र! अरे, ओ अमृत-स्पर्श! आनन्द-कन्द नयनों के!
प्राणों के आलोक! हाय! तुम अब तक छिपे कहाँ थे?
ऐल वंश का दीप, देवि! यह कब उत्पन्न हुआ था?
और आपने छिपा रखा इसको क्यों निष्ठुरता से?
हाय! भोगने से मेरा कितना सुख छूट गया है!

उर्वशी
अब से सोलह वर्ष पूर्व, पुत्रेष्टि-यज्ञ पावन में
देव! आप यज्ञिय विशिष्ट जीवन जब बिता रहे थे,
च्यवनाश्रम की तपोभूमि में तभी आयु जनमा था,
मुझमें स्थापित महाराज के तेजपुंज पावक से,
किंतु, छिपा क्यों रखा पुत्र का मुख पुत्रेच्छु पिता से,
आह! समय अब नहीं देव! वह सब रहस्य कहने का।
लगता है, कोई प्राणों को बेध लौह अंकुश से,
बरबस मुझे खींच इस जग से दूर लिए जाता है।

पुरुरवा
अच्छा, जो है गुप्त, गुप्त ही उसे अभी रहने दें।
आतुरता क्या हो रहस्य के उद्घाटित करने की,
जब रहस्य वपुमान सामने ही साकार खड़ा हो?
सभासदों! कल रात स्वप्न में इसी वीर-पुंगव को,
प्रत्यंचा माँजते हुए मैंने वन में देखा था।
और बढ़ा ज्यों ही उदग्र मैं इसे अंक भरने को,
यही दुष्ट छल मुझे कहीं कुंजों में समा गया था।
किंतु, लाल! अब आलिंगन से कैसे भाग सकोगे?
यह प्रसुप्त का नहीं, जगे का सुदृढ़ बाहु-बन्धन है?

आयु
आयु तक रहा वियुक्त अंक से, यही क्लेश क्या कम है?
तात! आपकी छांह छोड़ मैं किस निमित्त भागूँगा?
जब से पाया जन्म, उपोषण रहा धर्म प्राणों का;
हृदय भूख से विकल, पिता! मैं बहुत-बहुत प्यासा हूँ,
यद्यपि सारी आयु तापसी माँ का प्यार पिया है।

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