लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> उर्वशी

उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729
आईएसबीएन :9781613013434

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

205 पाठक हैं

राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा


इसीलिए दायित्व गहन, दुस्तर गृहस्थ नारी का।
क्षण-क्षण सजग, अनिन्द्र-दृष्टि देखना उसे होता है,
अभी कहाँ है व्यथा, समर में लौटे हुए पुरुष को,
कहाँ लगी है प्यास, पाँव में काँटे कहाँ चुभे हैं?
बुरा किया यदि शुभे! आपने देखा नहीं नृपति के
कहाँ घाव थे, कहाँ जलन थी, कहाँ मर्म-पीड़ा थी?
यह भी नियम विचित्र प्रकृति का, जो समर्थ, उद्भट है,
दौड़ रहा ऊपर पयोधि के खुले हुए प्रांगण में;
और त्रिया जो अबल, मात्र आंसू, केवल करुणा है,
वही बैठ सम्पूर्ण सृष्टि के महा मूल निस्तल में,
छिगुनी पर धारे समुद्र को ऊंचा किए हुए है।

इसीलिए इतिहास, तुच्छ अनुचर प्रकाश, हलचल का,
किसी त्रिया की कथा नहीं तब तक अंकित करता है,
छाँह छोड़ जब तक आकर वह वरवर्णिनी प्रभा में
बैठ नहीं जाती नरत्व ले नर के सिंहासन पर,
या जब तक मोहिनी फेंक मदनायित नयन-शरों की
किसी पुरुष को ले जग में विक्षोभ नहीं भरती है।

देवि! ग्लानि क्या। हम इतिहासों में यदि प्रथित नहीं हैं,
अपनी सहज भूमि नारी की धूप नहीं, छाया है,
इतिहासों की सकल दृष्टि केन्द्रित, बस एक क्रिया पर।
किंतु, नारियाँ क्रिया नहीं, प्रेरणा, पीति, करुणा हैं;
उद्गम-स्थली अदृश्य ,जहाँ से सभी कर्म उठते हैं।

लिखता है इतिहास कथा उस जनाकीर्ण जीवन की;
जहाँ सूर्य का प्रखर ताप है, भीषण कोलाहल है
पर, फैला है जहाँ चान्द्र साम्राज्य मूक नारी का;
वह प्रदेश एकांत, बोलता केवल संकेतों में।

अंवेषी इतिहास शूरता का, संघर्ष-सुयश का;
किंतु, हाय, शूरता नारियों की नीरव होती है;
वह सशब्द आघात नहीं, ममता है, कष्ट-सहन है।
सदा दौड़ता ही रहता इतिहास व्यग्र इस भय से,
छूट न जाए कहीं संग भागते हुए अवसर का;
किंतु, अचंचल त्रिया बैठ अपने गम्भीर प्राणों में,
अनुद्विग्न, अनधीर काल का पथ देखा करती है।

पर, तब भी हम छिन्न नहीं इतिहासों की धारा से,
कौन नहीं जानता पुरुष जब थकता कभी समर में,
किस मुख का कर ध्यान, याद कर किसके स्निग्ध-दृगों को,
क्लांति छोड़ वह पुन: नए पुलकों से भर जाता है?

और कौन प्रति प्रात हाँक नर को बाहर करती है,
नई उर्मि, नूतन उमंग-आशा से उसे सजा कर,
लड़ने को जा वहाँ, जहाँ जीवन-रण छिड़ा हुआ है,
करने को निज अंशदान इतिहासों के प्रणयन में?

और सांझ के समय पुरुष जब आता लौट समर से,
दिन भर का इतिहास कौन उसके मुख से सुनती है,
कभी मन्द स्मिति-सहित, कभी आंखों से अश्रु बहाकर?
नारी क्रिया नहीं, वह केवल क्षमा, शांति, करुणा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai