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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

क्या आपको दुःख नहीं होगा यदि पानी के अभाव में एक प्यासा गुलाब आपके आंगन में मर जाएगा। यदि उसकी अकाल मृत्यु हुई तो क्या सद्गति हो पाएगी.... गति नहीं हुई तो क्या वह भूत बनकर आपकी कोठी में नहीं मंडराता रहेगा। तब बताओ आपके घर में शान्ति कैसे आएगी?

विनयपूर्वक मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ - आप हम वृक्षों को जीवित प्राणी मानते हैं या नहीं? केवल बोलने और चलने वाले प्राणी को जीवित समझा जाता है? हममें जीवन्त प्राण है, हम खाते पीते हैं, मरते-जीते हैं, हंसते झूमते हैं, स्वस्थ-बीमार होते हैं, क्या एक गूंगा लंगड़ा व्यक्ति जीवन्त नहीं होता? ऐसे विकलांग व्यक्ति को तो सारा समाज अधिक सहायता करता है तो आप हमें भी एक विकलांग व्यक्ति समझकर देखभाल कर सकते हैं।

कोई चल न सके, बोल न सके, तो उसको पानी पिलाने का कितना धर्म होता है। मेरे समीप से आपके घर की गंदी नाली गुजरती है उमसें बहने वाला गंदा पानी भी मुझे मिल जाए तो मैं खुशी-खुशी जी सकता हूँ लेकिन वो भी न मिले तो आप ही बताओ मैं कैसे जिंदा रहूँ।

आप मेरे लाल-सुर्ख-सुंदर चेहरे पर कितना गर्व करते थे। घर में आने वाले सभी अतिथियों से मेरा परिचय कराते थे आपकी बातें सुनकर मेरा सीना गर्व से फूल जाता था।

मैं हंसते मुस्कराते हुए आपके घर में खुशियाँ लाता। आपके सांसों से निकली गंदी हवा को खाकर में आपके लिए स्वच्छ वायु तैयार करता। यही ताजी वायु तो आपके परिवार को स्वस्थ बनाती है।

सुबह जब आप नाश्ता करके घर से निकलते हो तब मैं प्रतिदिन सोचता हूँ कि आपको हमारे खाने-पीने का भी ख्याल आएगा, लेकिन आप इतनी भागदौड में होते हो कि हमारी ओर आपका ध्यान ही नहीं जाता। सायं को हार-थककर जब आप आफिस से लौटते हो तब भी हम आपको टुकुर टुकुर देखते रहते हैं परन्तु आप आंगन पार करके सीधे अपने कमरे में चले जाते हो, हम प्रतीक्षा करते रहते हैं, आप कब बाहर आओगे, कब आपकी नजर हम पर पड़ेगी, परन्तु आप इस बुद्धू बक्से (टी.वी.) के साथ इतना चिपक जाते हो कि आपको ये भी ख्याल नहीं आता कि आपका प्रिय गुलाब आपके आंगन में दम तोड रहा है।

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