ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
जिन्दगी की भागदौड में आप इतने व्यस्त हो गए कि आपने मेरी तरफ देखना ही बंद कर दिया, मुझे प्यार करना भी बंद कर दिया। मुझे यह सब अच्छा तो नहीं लगता था, परन्तु माली खिला-पिलाकर मेरी देखभाल कर देता था।
आफत तो तब आयी जब बीमारी के कारण माली रामसुख बीमार पड़ गया। वह कई दिनों तक नहीं आया। मैं टुकुर-टुकुर आपको आते-जाते देखता रहा, आपने मेरी ओर से आंखें बंद कर लीं। मेरे पास से गुजरते हुए भी आप तनावग्रस्त, उधेड़ बुन में रहने लगे।
इस गर्मी के मौसम में बिना खाद-पानी के मैं कितने दिन खुश रहता। मेरा चेहरा पीला पड़ने लगा, प्यास से गला सूखने लगा। प्रतिदिन आप डोलची में जल भरकर पत्थर की प्रतिमा पर जल चढ़ाने जाते तो मेरे पास से गुजरते। मैं जीभ लपलपाए आपकी ओर देखता रहता। आप पानी लिए मेरे पास से गुजर जाते- मैं अंदर ही अंदर रोता रहता- बिलखता रहता। मैं बेजुबान हूँ इसलिए अपने मन की पीड़ा आपको बता नहीं सकता परन्तु आप मुझे पीला पड़ता देखकर, मुरझाता हुआ देखकर अनुमान तो लगा ही सकते थे।
मैं जानता हूँ आप पर्यावरण प्रेमी हैं। बड़े-बड़े मंचों पर आप पेड़ पौधों की वृद्धि और संरक्षण की बात करते हैं। लोगों को यह भी समझाते हैं कि यदि कोई पेड़ लगाओ तो अपने बच्चे की तरह उसकी देखभाल करो। एक बार आपने भावुक होकर कहा था- ये पेड़ पौधे हैं, तो प्रकृति है.... पानी है.... हरियाली है... जीव जन्तु हैं... वरना कुछ भी नहीं..... कुछ भी तो नहीं....। परन्तु आप इससे अनजान हो गए कि आपके आंगन में भी एक भूखा प्यासा गुलाब दम तोड़ रहा है।
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