ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
एक गुलाब की मौत
शनिवार को आधे दिन का अवकाश होने के कारण राजकुमार तीन बजे ही घर लौट आया। जैसे ही वह अपने घर का बरामदा पार करने लगा, उसकी नजर सूखे गुलाब पर पड़ी। वह चौंककर वहीं रुक गया।
‘हे भगवान, मेरा प्रिय गुलाब एकदम सूखकर मुरझा गया... मर गया.... कैसे हुआ यह सब?’ अपने व्रिफकेश को किनारे रखकर वह गुलाब के गमले के पास पत्थर पर बैठ गया।
हरे पत्ते सूखकर गिर गए थे। गमले में तनों के ठूठ खड़े थे। राजकुमार ने एक तने को छूकर देखा.... कहीं कोई हरियाली नहीं बची थी। सूखकर पीला पड़ गया था। अब इसमें कोई जीवन नहीं है। संभवतया यह मर गया है। मैं इसका हत्यारा हूँ। माली तो एक महीने से बीमार होने के कारण छुट्टी पर चला गया है। उसके पीछे से तो मुझे ही इसकी देखभाल करनी चाहिए थी...।
‘‘आप यहाँ गर्मी में क्योंबैठे हो.....?’’ पत्नी दफ्तर से लौटी तो बरामदे में राजकुमार को गमगीन बैठे देखकर चौंक गयी।
‘देखो हेमा, हमारे गुलाब की मौत हो गयी- वह मर गया...... हम इसको जिंदा नहीं रख सके’। राजकुमार विलाप सा करने लगा।
‘इसमें आपका क्या दोष है। यह सब तो रामसुख को देखना चाहिए था- उसने लापरवाही की है। चलो अंदर चलो’ हेमा अपने पति की बैग उठाकर अंदर ले आयी।
‘रामसुख तो बीमार है, हमें बताकर भी गया था परन्तु जिंदगी की भागदौड़ में हमने ही सब कुछ बिसरा दिया’ - पत्नी के पीछे राजकुमार भी कमरे में आ गया।
‘चलो छोड़ो ये सब, रामसुख आएगा तो दूसरा गुलाब लगवा लेंगे’ - बोलो चाय के साथ क्या खाओगे....?’
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