ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
‘अरे इस बरगद की बेटी के दिमाग में तो मशीन लगी है। सौ बरस की बात भी नहीं भूलती, रुकमणी आश्चर्य प्रकट करती।
पुजारिन बहुत खुश थी। एक तो वह राधा के साथ दिनभर लगी रहती दूसरा मंदिर की आमदनी भी बढ़ गयी थी। एक दिन रुकमणी पुजारिन को साथ लेकर गांव के छोटे स्कूल में राधा का नाम लिखवाने गयी। बड़ी मास्टरनी दाखिला करने लगी। उसने लड़की का नाम पूछा तो पुजारिन ने राधा लिखवा दिया। पिता का नाम पूछा तो रुकमणी ने ‘बरगद’ लिखवा दिया। बड़ी मास्टरनी शहर से आती थी इसलिए जो कुछ उन्होंने बताया लिखकर राधा का दाखिला कर दिया। ‘बरगद की बेटी’ स्कूल में आ गई है। उस दिन सारे स्कूल में यही चर्चा होती रही।
प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी पर्व गांव के मन्दिर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गांव के गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ शहरों में गए कई परिवार भी नियमित रूप से उस दिन गांव में आते। तीन दिन तक ‘कृष्ण-लीला’ का ड्रामा मंचित किया जाता, मन्दिर की सफाई, सफेदी और सजावट की जाती। मंदिर के परकोटे में श्री कृष्ण की सुंदर और मनोहर झांकियां बनायी जातीं। जैसे ही रात के बारह बजे श्री कृष्ण जी का जन्म होता तो मंदिर के घडियाल और शंख ध्वनि से सारा गांव गूंज उठता। अंत में एकत्रित समुदाय प्रसाद लेकर अपने अपने घरों को लौट जाता।
इस जन्माष्टमी पर मंदिर में बैठकर पंचायत के बीच दो महत्वपूर्ण फैसले हुए। एक तो दिल्ली से पधारे लाला बशेसर लाल ने मंदिर का जीर्णेद्वार अपने खर्चे से करने का निर्णय किया। इस कार्य को मूर्त-रूप देने के लिए लाला जी को तीन दिन तक गांव में ठहरना पड़ा। तीनों दिनों का अधिकांश समय लाला जी का मन्दिर में व्यतीत हुआ। इन तीनों दिनों में राधा ने लाला जी का मन मोह लिया। निःसंतान लाला जी ने राधा को गोद लेने के लिए यह प्रस्ताव पंचायत के सामने रखा तो सबने सहर्ष अपने-अपने स्वर में एकरूपता प्रकट की। लाला जी के पास रहकर इस लड़की का जीवन ही बदल जाएगा। लाला जी का मन्दिर पर बड़ा उपकार है इसलिए इस बात में कोई बुराई नहीं है। बिना माँ बाप की लड़की को सज्जन माँ बाप मिल जाएं तो इससे भला क्या काम हो सकता है।
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