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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

‘देख तो करमजली कैसे गटक-गटक पी री सै।’ विमला की बात सुनकर सबको चैन आ गया।

‘मारन वाले तै बचावन वाला ठाडा होवै से’। बातचीत करती हुई निश्चिंत होकर सब महिलाएँ अपने घर लौट गयीं।

जैसे ही सूर्य का प्रकाश उस गांव में फैला तो ‘बरगद की बेटी’ की बात एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, सारे गांव में फैल गयी। उस दिन मंदिर में पूजा करने के लिए सबसे अधिक औरतें आयीं।

‘हे भगवान बेरा ना किसका पाप फूटा...?’

पण्डिताइन सबको समझाती मंदिर में कोई पाप नहीं होता ये तो राधा है, राधा अपने कृष्ण के पास आयी है रास रचाने। मैं बताऊँ, लोग-लुगाईयों ने लड़को की हाबका लाग की सै, इस कन्या को छोड दिया भगवान भरोसे। महिलाओं के साथ कुछ आदमी भी इस घटना को सुनकर मंदिर में आए। पंच सरपंच भी आए। कृष्ण जी के साथ उसका पालना डाल दिया गया। औरतें कृष्ण को झूला देने आतीं तो राधा को अवश्य झुलातीं। सबने सर्वसम्मति से निर्णय किया कि कन्या मन्दिर में पुजारिन के पास रहेगी और सब गांव वाले इसको अपनी बेटी समझकर देखभाल करेंगे।

कन्या का नामकरण हुआ तब भी अनेक विचार आए। पुजारिन उसका नाम ‘राधा’ रखना चाहती थी। विमला उसका नाम ‘पथवारी’ रखना चाहती थी परन्तु रुकमणी ने उसको ‘बरगद की बेटी’ नाम दिया। अंत में यही फैसला हुआ जिसका जो मन में आए वह उसी नाम से पुकार ले। ‘बरगद की बेटी’ को फलने फूलने के लिए किसकी सहायता चाहिए और फिर राधा के पीछे तो सारा गांव खड़ा था।

गांव की औरतें मंदिर में पूजा करने आती तो घंटों उसके साथ खेलतीं। दूध पिलातीं, स्नान करातीं, उसके लिए नए-नए वस्त्र लातीं, उसका साज श्रृंगार करतीं। रजनी तो उसपर जान छिडकती थी। यदि कोई देख न रहा हो तो वह उसे अपना दूध भी पिला देती। एक दिन रुकमणी उसको उंगली पकड़ाकर अपने घर ले गयी फिर तो क्या था एक घर से दूसरे, दूसरे से तीसरे उस दिन वह सांझ ढले मंदिर आयी। सबको उससे बातें करने में बड़ा आनन्द आता। वह सब घरों का हालचाल एक दूसरे को सुनाती तो सब हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाते।

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