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ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस

तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

नए पद का कार्यभार संभालने, मकान आदि को व्यवस्था करने में बी० आर० राणा को दो मास लग गए। इस दफतर में सब उसे राणा साहब का सम्बोधन देते। फिर एकदिन सबको शहर ले जाने के लिए घर के सामने ट्रक आ खड़ा हुआ। दमयन्ती को विदा करने आसपास की सभी महिलाए एकत्रित हुईं। राजरानी तो दमयन्ती के गले लगकर खूब रोई, दमयन्ती सजल आंखों के साथ विदा हुई तो उसे अपना गोणा याद आ गया।

शहर में आकर दमयंती गमगीन रहने लगी। सुबह सायं एक एक घंटा रामायण पाठ कर लेती। सड़क पर घूमते, पार्क में बैठे लोगों को देखती रहती। यूँ बहू उसके खाने पीने कर पूरा ख्याल रखती परन्तु दमयंती की भूख ही मर गयी थी। खुराक आधी रह गयी। राणा साहब को अब मां के पास बैठने की फुर्सत नहीं मिलती। चुन्नू उसका पोता भी उसके पास नहीं बैठ पाता। स्कूल से लौटने के बाद खिला पिलाकर बहू उसका होमवर्क कराने बैठ जाती। सायं को वह अपने दोस्तो के साथ पार्क में खेलने चला जाता। रात को टी० वी से चिपक जाता। दमयंती का मन होता वह उसको अपने पास बैठाए उसको खेल खिलाए, कहानी सुनाए, अपने हाथ से खाना खिलाए और पीठ थपथपाते-थपथपाते अपने पास सुलाए। परन्तु चुन्नू की इन बातों में तनिक भी रुचि नहीं थी। एक दिन दमयन्ती पड़ोस के मंदिर में भी गयी परन्तु सब अजनबी, अपनी अपनी पूजा में मस्त आस पास में कौन खड़ा है किसी को देखने की फुर्सत नहीं...। पुन मंदिर में जाने की लिए उसका मन न हुआ।

राणा साहब मां की उदासी को जानता था। यह बात उसको कचोटती भी थी परन्तु समाधान कोई नहीं था इसलिए वह चुप लगा जाता। जब उससे न रहा गया तो शनिवार रात को वह मां के कमरे में आकर बैठ गया- मां तुम्हारा दिल लग रहा है कि नहीं...?

‘बेटे, सच पूछता है तो मुझे गांव के सब लोग बहुत याद आते हैं फिर घर भी खाली पड़ा है.... आजकल चोर उच्चकों का भरोसा नहीं। मैं चाहती हूँ कुछ दिन गांव में रह आऊँ....’। दमयंती ने अपने मन की बात कह दी।

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