ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
बच्चों को घर पर पढ़ाना बदलराम ने बंद कर लिया क्योंकि स्कूल में बच्चों को पढ़ाना, आफिस का काम, साइकिल तथा देर रात तक बैठकर अपनी शिक्षक योग्यता को और बढाना। प्रतिवर्ष कोई न कोई परीक्षा देकर उन्होंने कई डिग्री और सम्बन्धित योग्यता अर्जित कर ली। अर्जित योग्यता के आधार पर उन्हें निरन्तर तरक्की भी मिलती रही। इसी प्रक्रिया में मुख्याध्यापक की लिस्ट में उनका नाम था। पड़ोसी गांव के सरपंच ने उसकी योग्यता के बारे में सुना तो शीध्र ही अपनी लड़की के लिए चुन लिया। दान दहेज में सरपंच ने स्वेच्छा से इतना सामान दिया कि दमयन्ती का घर भर गया। बदलराम को इतना दहेज लेना पसंद नहीं था परन्तु सरपंच जी की जिद्द व मां की इच्छा के सामने उसकी एक न चली।
बदलराम के हैडमास्टर बनने पर मां ने देवी मां का जागरण करवाया। गांव वालों को भोजन कराया तथा रिश्ते-नाते वालों को यथायोग्य मान सम्मान और उपहार भेट में दिए। इतनी सारी खुशियों के बीच दमयंती को पता ही न लगता, कब दिन, सप्ताह, महीना और वर्ष बीते जा रहा था। समय को मानों पंख लग गए थे।
अब मां के पास प्रतिसायं बैठकर बतियाना संभव नहीं रहा। कभी स्कूल के अध्यापक, चपरासी या दूसरे स्कूल के मुख्याध्यापक घर लौटने के बाद भी सलाह लेने के लिए आ जाते। मां के समय का हिस्सा उनमें विभाजित हो जाता। कभी कभी बदलराम को यह कचोटता और मां को भी अधूरापन सा लगता। दमयन्ती उसकी व्यस्तताओं को समझती थी इसलिए उसको कोई शिकायत नहीं थी।
खण्ड शिक्षा अधिकारी के पद पर प्रोन्नत होने पर घर की स्थिति बदलने लगी। कार्यालय घर से १५ किलोमीटर दूर था। बातों-बातों में दयमंती ने स्पष्ट कर दिया कि वह तो अपना गांव अपना घर छोड़कर शहर में जाएगी नहीं। बदलराम ने एक नया स्कूटर खरीद लिया और वह प्रतिदिन उसपर सवार होकर शहर जाने लगा। स्वयं बदलराम तो प्रतिदिन मां के पास नहीं बैठ पाता परन्तु उसकी पत्नी कमला मां का पूरा ख्याल रखती। अपने मन को बदलने के लिए दमयंती प्रतिदिन सुबह रामायण का पाठ करती दोपहर में चरखा चलाती और सायं को सत्संग में चली जाती।
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