ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
इस पूरी कहानी के सभी पात्र अपने-अपने अक्ष के चारों ओर घूम रहे हैं। पिता अपने प्रभाव से बेटे को बिना कुछ खर्च किए अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता है। सरकार कल्याणकारी नीतियों की घोषणा करके अपना वोट बैंक सुरक्षित करना चाहती है। प्रशासन को जो भी ऊपर से आदेश मिलता है उसका पालन करवाना होता है। सामाजिक संस्थाए नियमों की दुहाई देकर लोकप्रिय होना चाहती हैं। स्कूल संचालक अधिक से अधिक कमाकर अपनी जेब भरना चाहता है। सब अपने अपने स्वार्थों के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहे हैं विद्यार्थी जिसके लिए यह सब कुछ किया जा रहा है उसकी चिंता किसी को नहीं। उसकी समस्या का समाधान कोई नहीं करना चाहता।
विद्यार्थी अधिकांश समस्याएं तो खुद ही स्कूल में निपट लेता। पिता को तो वह कभी कुछ भी नहीं बताता। वह जानता था पिता स्कूल में जाकर झगड़ा मचा देंगे और फिर अध्यापकों का नजला मुझपर पड़ेगा। यदि कुछ बड़ी समस्या आ जाती तो वह मां को बता देता। रात के समय उसने अपनी मां को बताया - मां जिस दिन पिता जी मुझे स्कूल में दाखिल कराने गए थे तो बार-बार बी.पी.एल. कार्ड की चर्चा कर रहे थे इसलिए कक्षा अध्यापक और सभी बच्चों ने मिलकर मेरा नाम बी.पी.एल. कार्ड रख दिया। पिता को तो आप कभी मेरे स्कूल में नहीं भेजना, जाना भी पडे तो आप ही जाना...।
ठीक है बेटा, कभी जाना पड़ा तो मैं ही जाया करूंगी। तू चिंता मत कर - बेटे की पीठ थपथपाते हुए मां ने उसे अपनी गोदी में ही सुला लिया।
उस दिन तो हद ही हो गई। कक्षा में एक लड़के के साथ झगड़ा हो गया। दूसरा लड़का बार-बार उसे बी.पी.एल. कार्ड... बी.पी.एल. कार्ड कहकर चिढ़ा रहा था। उसने अध्यापक को शिकायत की तो अध्यापक ने उसकी ही पिटाई कर दी। कक्षा में शोर मचाने के लिए उसे अपमानित करके सब कक्षाओं में घुमाया गया। वह खिन्न हो गया। उसके मन में आया, यह स्कूल, यह घर छोड़कर कहीं भाग जाए। अचानक उसे याद आया जब मुख्य अध्यापक ने मां को कहा था - स्कूल के नियमानुसार हम फेल होने वाले छात्र को स्कूल से निकाल देते हैं। उसके चेहरे पर कटु मुस्कान पसर गयी।
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