ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
उस रात मां ने पिता जी को समझाने का प्रयत्न किया - अपना बेटा पढाई में पिछड़ गया और सेहत भी बिगड़ गई। रोज-रोज स्कूल से शिकायत आती है क्यों न इसको सरकारी स्कूल में ही भेज दें....।
‘पागल हो गयी क्या? कितनी मुश्किल से तो प्राइवेट स्कूल में दाखिल करवाया है। एडजैस्ट होने में थोड़ा समय तो लगेगा ही। तुझे मालूम है कितना लड़-झगड कर सरकारी स्कूल के हैडमास्टर से उसका सर्टीफिकेट लाया था। अब उसके सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाऊं - पिता क्रोध से झल्ला उठा। उसके बाद मां कुछ नहीं बोली।
माता-पिता दोनों आश्चर्य में डूब गए जब बेटे का परीक्षा-परिणाम सुना। पूरे स्कूल में केवल उन्ही का बेटा अनुत्तीर्ण था। ऐसा तो हो नहीं सकता। एक स्कूल में प्रथम आने वाला छात्र दूसरे स्कूल में सभी छात्रों से पीछे कैसे जा सकता है। पिता तुंरत समझ गए कि इसमें अध्यापकों की साजिश है। क्योंकि मैंने अध्यापकों के विरोध के बावजूद धारा १३४-ए के अन्तर्गत नि:शुल्क अपने बच्चे को शिक्षा दिलवाई इसी के बदले में उन्होंने मेरे बेटे को फेल कर दिया। खैर कोई बात नहीं देख लूंगा सारे मास्टरों को.... उनकी ऐसी की तैसी न करी तो मेरा नाम......।
दूसरे दिन स्कूल खुलते ही पिता ने जाकर स्कूल में हंगामा कर दिया- तुमने मेरे बेटे को इसलिए फेल कर दिया क्योंकि १३४-ए की धारा के अनुसार मैंने स्कूल में कोई फीस जमा नहीं करायी....।
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