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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

उस स्कूल के सामने से निकलते हुए कई बार पिता खबरची के मन में आता कि उसका बेटा भी सरकारी स्कूल की बजाय प्राइवेट स्कूल में पढना चाहिए। परन्तु वहां के खर्चे सुनकर वह मन मसोस लेता। जब से उसने शिक्षा अधिनियम की धारा १३४ ए के बारे में पढ़ा है तो उसकी बाछें खिल गयीं। हाई-कोर्ट के आदेशानुसार अब तो सभी प्राइवेट स्कूलो को २५ प्रतिशित सीट गरीब बच्चों के लिए आरक्षित करनी पडेंगी। उसका तो बी.पी.एल. कार्ड है। कोई मना कर ही नहीं सकता। अब पिता को अपना सपना सच होता नजर आने लगा।

उसी दिन गली से गुजरते हुए स्कूल मुखिया से मुलाकात हो गयी - इस साल मेरे बेटे को भी आपने पढ़ाना पडेगा....

पढांएगे क्यों नहीं, स्कूल बच्चों को पढाने के लिए होता है - संचालक महोदय ने कहा! ‘समझे नहीं मास्टर’ मेरा बी.पी.एल. कार्ड है ना, इसलिए मेरे बेटे को आपने १३४ ए के अन्तर्गत नि:शुल्क पढाना पडेगा.......

‘देख लेगे.. आप स्कूल आ जाना’ - गली में खडे होकर संचालक महोदय ने बात करना उचित नहीं समझा। इसलिए वे टाल-मटोल करके निकल गए।

पिता सरकारी स्कूल से प्रमाण-पत्र निकलवाने गए तो मुख्य अध्यापक महोदय ने उनको बहुत समझाया। परन्तु उनको तो एक ही धुन सवार थी बेटे के सरकारी स्कूल से निकालकर प्राइवेट स्कूल में दाखिल कराना। प्रमाण-पत्र निकलवाने में मुख्य अख्यापक के साथ इतनी बहस हुई की प्रमाण-पत्र लेते-लेते स्थिति विवाद में बदल गयी।

प्रमाण-पत्र हाथ में लिए पिता ने अपने बेटे के साथ प्राइवेट स्कूल में प्रवेश किया। ‘लो मास्टर जी संभालों अपने शिष्य को-पिता ने आज पहली बार मास्टर जी कहा। अन्यथा वे सदा मास्टर ही कहकर बोलते थे, ‘कांउटर पर जाकर इसकी रसीद बनवा लो’-

मुझे रसीद-वसीद कुछ नहीं बनवानी। ये लो मेरा पीला कार्ड। शिक्षा अधिनियम की धारा १३४ ए के अन्तर्गत मेरे बेटे की फीस माफ कर दो...।

यदि आप फीस नहीं देगें तो स्कूल कैसे चलेगा। सरकार से तो कोई आर्थिक मदद मिलती नहीं - स्कूल का सारा खर्च बच्चों की फीस से ही चलाना पड़ता है...’

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