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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

१३४-ए का दंश


यह एक होनहार विद्यार्थी की कहानी है जिसे १३४ ए के दंश ने निगल लिया। उस विद्यार्थी का नाम....,  कृपया नाम मत पूछिए, और सच बात तो ये है मैं इस कहानी के किसी भी पात्र का नाम नहीं बताना चाहता। क्योंकि प्रत्येक पात्र कहीं न कहीं देखा, सुना या पढ़ा हुआ होता है। रोजमर्रा के जीवन से चुने हुए पात्र कहीं न कहीं कहानियों के पात्रों से मेल खा जाते हैं और यदि पात्र का चरित्र कमजोर गढा गया हो वह ताउमर मुंह फुलाए रहता है इसलिए मैं इस कहानी में एक भी पात्र का नामकरण नहीं करता, आप उनके कार्यों और सम्बोधनों से ही पहचान लीजिए।

उस होनहार विद्यार्थी ने सरकारी स्कूल की पाँचवी कक्षा में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त किए थे। केवल अपनी कक्षा में ही नहीं वह सारे स्कूल में आदर्श विद्यार्थी था। जब से वह राज्य स्तरीय खेलों में भाग लेकर लौटा है प्रतिदिन सुबह सायं अकेला स्टेडियम में जाकर पसीना बहाता है।

होनहार विद्यार्थी का पिता बी.ए. तक पढ़ा है, परन्तु केवल बी.ए. पढे को कौन पूछता है, बी.ए. तो घर में बैठी लड़कियां खेल-खेल में उत्तीर्ण कर जाती हैं। कहीं कुछ नौकरी का जुगाड़ नहीं हुआ तो वह टाइम-पास करने लगा है। सुबह सुबह चाय की दुकान पर बैठकर एक घंटा अखबार पढ़ना राजनीति-भ्रष्टाचार व अन्य खबरों का विश्लेषण करना। गाँव की राजनीति की सारी खबर रखना। सत्ता चाहे किसी भी पार्टी की हो परन्तु उसकी पैठ सभी राजनैतिक पार्टियों में रहती है। इसी के फलस्वरूप ग्राम पंचायत में उसने अपना बी.पी.एल. कार्ड बनवा रखा है। जिसके आधार पर वह सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाओं को भोगता है। लोग उसको खबरची भी कहते हैं। सायं ढलते ही खबरची की खबरें सुनने के लिए प्रतिदिन कोई न कोई उसका गला तर कर देता है।

उसी गाँव में एक प्राइवेट स्कूल चलता है। सरकारी स्कूल में केवल सौ बच्चे और उसमें पांच सौ छात्र। स्कूल संचालक उसी गाँव के है। बी.ए. वी.एड. करने के बाद तीन वर्ष तक वे सरकारी मास्टर न बन पाए तो गुजर-बसर करने के लिए उन्होंने ट्यूशन पढानी आरम्भ कर दी। धीरे-धीरे वही ट्यूशन सैंटर सैकेण्डरी स्कूल में बदल गया।

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