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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

सिनेमाहाल के कई कर्मचारी तुरंत वहा आ गए। रणधीर सिंह, ईश्वर सिंह और अशोक कुमार, शर्मा जी को संभालने का प्रयत्न कर रहे थे। इस आकस्मिक घटना से वे भी हक्के बक्के हो गए।

‘क्या हुआ’ हाल कर्मचारी ने पूछा?

‘शायद कुछ तबियत खराब हो गयी है- रणधीर सिंह ने बताया।

‘आप इनके साथ हैं?’ चलो जल्दी करो इनको तुंरत पास के हॉस्पीटल में ले चलो- दोनों कर्मचारियों की सहायता से वे सब शर्मा को कंधे पर डालकर बाहर ले आए। बाकी सबको घर भेज दिया। वे तीनों शर्मा जी की पत्नी को साथ लेकर हॉस्पीटल में आ गए।

दिल पर सदमा लगा था। डाक्टरों के थोड़े बहुत उपचार के बाद शर्मा जी को होश आ गया।

‘कुछ कमजोरी है, गुलुकोश में मिलाकर ताकत की दवा दे दी है। घबराने की कोई बात नहीं, कभी कभी दर्दनाक सीन देखकर ऐसा हो जाता है। एक घण्टे में सबकुछ नॉर्मल हो जाएगा, फिर आप इन्हें घर ले जा सकते हैं। बस एक ध्यान रखना दो चार दिन इन्हें अकेले न छोड़ना और इस घटना के बारे में अधिक चर्चा नहीं करना - समझाकर डाक्टर चला गया।

‘शर्मा जी, अब कैसा महसूस हो रहा है...?’ रणधीर सिंह ने आहिस्ता से पूछा।

‘शर्मा जी कुछ नहीं बोले, सिनेमाहाल का पूरा चित्र उनकी आंखों में घूम रहा था। उनको स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि आज उनका दिन पिंघल गया- दस वर्ष बाद आज कैसे दीपक याद आ गया। अपने द्वारा किए कार्य पर वे लज्जित अनुभव कर रहे थे।

रात के दस बजे शर्मा जी अपने साथियों के साथ आराम से स्वयं गाड़ी में बैठकर घर आ गए। शर्मा जी के परिवार वालों ने तथा उन्होंने आपस में एक दूसरे को घर जाने के लिए कहा परन्तु उस रात तो तीनों ने वहीं ठहरने का निर्णय कर लिया।

शायद नशे की दवाईयाँ दी होंगी इसलिए शर्मा जी दवा लेते ही सो गए। उन तीनों का बिस्तर बराबर वाले कमरे में लगा रखा था, इसलिए तीनों चुपचाप उठकर अलग कमरे में आ गए।

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