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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

अशोक कुमार ने निर्णय सुनाया- "शर्मा जी, आपके बिना तो कोई जा नहीं सकता, चलेंगे तो बस साथ चलेंगे नहीं तो कोई नहीं जाएगा।"

"अशोक जी, आप भी कमाल करते हैं, वैसे फिल्म देखने में मेरा कोई विरोध नहीं है परन्तु तुम तो जानते हो, दस वर्ष से मैं परिवार की शादी-ब्याह में भी नहीं गया।"

‘हमें सब मालूम है परन्तु इस बार आप हमारे लिए चल पड़े।’ हाँ शर्मा जी चल पड़ो......।’

‘बहुत दिनों बाद एक पौराणिक फिल्म देखने का मौका मिलेगा......।’ तीनों साथियों ने आग्रह किया तो शर्मा जी इन्कार न कर सके। अगले दिन बारह टिकट मंगाकर छ: बजे वाले शो में जाने का फैसला कर लिया। अपने अपने परिवार के साथ बैठे सभी लोग बतियाते हुए फिल्म के चालू होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बिस्कुट, पोपकोर्न, कैम्पा आदि चिल्लाते हुए हॉकर इधर-उधर घूम रहे थे। फिल्म आरम्भ हुई। ब्लैक एण्ड वाईट वह भी पुरानी फिल्म होने के कारण दर्शक कम ही आए थे, यूं समझो लगभग आधा हॉल भरा हुआ था।

लंच तक आते आते राजा हरिश्चन्द्र के दुर्भाग्य को देखकर दर्शक एकदम गमगीन हो गए। कई महिलाओं बच्चों की तो आंखे नम हो गई। अशोक कुमार की बराबर में बैठी नवेली दुल्हन तो फिल्म देखते-देखते सिसकने लगी। एक बार उनका मन हुआ कि समझा दे- बेटा ये जो कुछ पर्दे पर दिखाई दे रहा है, सब नकली कहानी है.......’ परन्तु उसका आदमी न जाने क्या सोचे। इस ख्याल से वह चुपी लगा गया।

इन्ट्रवल के बाद फिल्म आरम्भ हुई। ठण्डा कुरकुरे, भुजिया, आदि से निवृत होने में लगभग १५-२० मिनट और लगे फिर आ गया घोर गमगीन दृश्य। पुत्र रोहताश के सर्प द्वारा डस लेने के बाद रानी तारावती अपने बेटे का दाह संस्कार करने के लिए शमशान-घाट पर अपने पति राजा हरिश्चन्द्र के पास आयी। अपनी अपनी दर्दभरी व्यथा सुनाते हुए दोनों पति पत्नी जब हृदय विदारक गाने गाते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त करने लगे तो एक अजीब घटना घटी। गमगीन और सांस रोके एकटक पर्दे पर नजर गडाए लोगों के बीच अचानक शर्मा जी अपनी छाती पीट-पीट कर चिल्लाने लगे। ‘हाय रे मेरा दीपक.... हाय मेरा लाल.... कहां चला गया तू मुझे अकेला छोड़कर...। हृदय विदारक चीख सुनकर एक बार सब सकते में आ गए। किसी की कुछ समझ में न आया क्या हुआ। ‘क्या हुआ? ..... यह समझने के लिए फिल्म रोक दी गयी। शर्मा जी एक बार फिर कुर्सी से उठकर चिल्लाएं -हाय मेरा दीपक... और फिर कुर्सी पर गिर कर बेहोश हो गए।

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