ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
पाषाण हृदय
बेटे दीपक के शहीद हो जाने के बाद नरेश शर्मा पूर्णतया सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे। वैसे भी जिस व्यक्ति का इकलौता बेटा देश पर शहीद हो जाए उसके जीने का अर्थ क्या रह जाता है। परन्तु शर्मा जी के जीवन जीने का महत्वपूर्ण अर्थ है। समाज के लिए उनका बड़ा योगदान है।
उनको देखकर ऐसा नहीं लगता कि जीवन में शर्मा जी ने इतनी गहरी चोट खायी है। प्रतिदिन सुबह उठना, सैर करना, नियमित दिनचर्या के उपरान्त पूजा-पाठ करके अपने बैंक में चले जाना। पूरी निष्ठा और इमानदारी के साथ बैंक में चले जाना। पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ बैंक के कार्य निपटाना। अपने बेटे की स्मृति से उन्होंने एक शहीद दीपक शर्मा ट्रस्ट बना रखा है, जिसमें उनके बेटे के देश पर शहीद होने के बाद सरकार से मिली राशि उन्होंने जमा कर दी। कुछ अच्छे लोगों को जोड़कर ट्रस्ट का स्वरूप बना दिया। उस राशि से सामाजिक कल्याण कार्यों की गतिविधियाँ चलती रहती है। सायं के समय प्राय: उन लोगों के साथ बैठक होती रहती है।
उस दिन सायं के समय सभी साथियों के साथ चर्चा चल रही थी तो रणधीर सिंह ने कहा शर्मा जी पास के शीला थिएटर में बड़ी अच्छी पिक्चर आयी है....।
शर्मा जी तो कुछ नहीं बोले, परन्तु ईश्वर सिंह पूछ बैठे.... कौनसी...?
‘सत्यवादी हरिश्चन्द्र’
‘पिक्चर है तो पुरानी परन्तु कहानी बड़ी शिक्षापूर्ण है’ ईश्वर सिंह ने बात को आगे बढ़ाया।
‘तो क्या विचार है...? साफ साफ बताओ। अशोक कुमार ने बात को अगे बढ़ाया।
‘अशोक जी विचार ये है.... यदि शर्मा जी हमारे साथ चलें तो सारे सदस्य एक बार मिलकर फिल्म देखने चलें...।’
‘अरे, नहीं नहीं रणधीर सिंह, आप तो जानते हो मैं कभी फिल्म आदि जाता नहीं और न ही मेरा मन कहीं जाने का होता’ - हाँ आप सब मिलकर चले जाओ, अच्छी फिल्म है, सारे घरवालों को भी साथ ले जाओ- शर्मा जी ने सुझाव दिया।
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