ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
सायं के समय में दो घण्टे बच्चों के साथ फुटबाल खेलता हूँ। बच्चों को तो लाभ होता ही है। परन्तु इससे मुझे जो स्वास्थ्य लाभ मिलता है उसी का परिणाम है कि पचास साल पार कर जाने के बाद भी लोग मुझे ३५-४० का समझते हैं। यह क्या कम उपलब्धि है कि पचास वर्ष बीत जाने के बाद भी मैंने आज तक किसी भी प्रकार की दवा का सेवन नहीं किया है। किसी अयोग्य छात्र को योग्य बनने के लिये प्रेरित करना, उस पर उसका प्रभाव दिखाई देना सचमुच कितना सन्तोष और सुख प्रदान करता है इसका मैं आजकल अनुभव करने लग गया हूँ। पूरा दिन, सप्ताह, माह और एक वर्ष कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। पुराने छात्र जाने के बाद नये छात्र, नये अनुभव, नया संघर्ष, सब कुछ कितना मजेदार होता है बताया नहीं जा सकता। आज के युग में रोजी-रोटी कमा लेना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। रोजी-रोटी से पेट तो भर जाता है लेकिन एक मन की भूख होती है, ज्ञान की पिपासा होती है उसी को शान्त करने के लिए एक शिष्य अपने गुरू के पास आता है। उन दोनों के बीच जब सही संवाद होता है तब शिक्षण का विकास होता है। यही निरन्तर संवाद ही अध्यापक को श्रेष्ठता प्रदान करता है।
एक शिष्य के लिए अध्यापक कभी नहीं मरता। वह अपने शिष्यों के विचारों में सदैव परिलक्षित होता रहता है। छात्र एक आइना होता है अपने अध्यापक का। तुम्हारे खतों को पढ़कर आज मुझे अपने गुरू जी की याद आ गयी। उनका बहुत प्रभाव है मुझ पर। काश वो इस दुनिया में होते तो मैं उन्हें खत लिखता।
राधारमण, मैं तुम्हें क्या बताऊं अध्यापक तो एक राजा के समान होता है। राजा कंस ने अपने पिता को कारागार में डालने से पूर्व उनकी इच्छा जाननी चाही तो महाराजा उग्रसेन ने समय व्यतीत करने के लिए कुछ शिष्यों को पढ़ाने की इच्छा व्यक्त की थी, तब दुष्ट कंस ने कहा था अभी तक सम्राट बनने की बू आपमें से गयी नहीं। हमारे धर्म-शास्त्र इस बात के गवाह हैं कि राजा ने सदैव अपने गुरूओं को अपने से श्रेष्ठ और सम्मानित समझा है तभी तो अरस्तु ने सिकन्दर से कहा कि भारत से मेरे लिए एक गुरू लेकर आना। यही एक सच्चे गुरू की प्रतिष्ठा है और इसी प्रतिष्ठा को हमनें और तुमने बनाए रखना है।
शेष फिर।
विद्याभूषण।
राधारमण को इतना लम्बा पत्र लिखकर विद्याभूषण ने लिफाफे में बन्द कर दिया। इतमिनान से उसको एक तरफ रख दिया। पढ़ने के लिए अखबार उठाया तो प्रथम पृष्ट पर राज्य पुरस्कार के लिए श्रेष्ठ अध्यापकों की लिस्ट छपी हुई थी। लिस्ट में पहला ही नाम राधारमण का था। विद्याभूषण ने खड़े होकर पेपर उछाल दिया और आत्म-विभोर होकर नाचने लगे। एक क्षण ऐसा लगा की यह पुरस्कार उनके लिए ही घोषित हुआ है। वे राधारमण को हार्दिक बधाई देने के लिए सावधानी पूर्वक लिफाफे में पड़े खत को खोलने लगे।
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