ई-पुस्तकें >> श्रीहनुमानचालीसा श्रीहनुमानचालीसागोस्वामी तुलसीदास
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हनुमान स्तुति
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।।11।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।12।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।13।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ।।14।।
यम कुबेर दिकपाल जहां ते ।
कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।।15।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।16।।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।17।।
जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।18।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।।19।।
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।20।।
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