ई-पुस्तकें >> श्रीबजरंग बाण श्रीबजरंग बाणगोस्वामी तुलसीदास
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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
जन की लाज जात ऐहि बारा।
धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना।
जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई।
जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे।
जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता।
जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा।
पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना।
देखत रहत सदा हर्षाना।।
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