ई-पुस्तकें >> श्रीबजरंग बाण श्रीबजरंग बाणगोस्वामी तुलसीदास
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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
विधि शारदा सहित दिनराती।
गावत कपि के गुन बहु भाँती।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना।
करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तव आई।
ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे।
मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी।
जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना।
धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं।
दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
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