ई-पुस्तकें >> श्रीबजरंग बाण श्रीबजरंग बाणगोस्वामी तुलसीदास
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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल।
ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो।
सुमिरत होय आनन्द हमारो।।
ताते विनती करौं पुकारी।
हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा।
कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ।
मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ।
अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
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