ई-पुस्तकें >> श्रीबजरंग बाण श्रीबजरंग बाणगोस्वामी तुलसीदास
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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
बदन कराल काल कुल घालक।
राम सहाय सदा प्रति पालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की।
राखु नाथ मरजाद नाम की।।
जनकसुता हरि दास कहावौ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा।
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर जोरि मनावौं।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई।
पांय परौं कर जोरि मनाई।।
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